उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। राजनीति भी बढ़ी ... चीज होती है, कब क्या करवाए कहा नहीं जा सकता। आत्मविश्वास से लबरेज शिवराज के मैनेजर्स का आज यही हाल देखने को मिला। सिंधिया के घबराए शिवराज के मैनेजर्स दिग्विजय सिंह से हाथ मिलाने पर भी विचार कर रहे हैं।
यह तो पहले से ही तय हो गया है कि मध्यप्रदेश में इस बार चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच नहीं बल्कि शिवराज एंड कंपनी और शिवराज सिंह विरोधियों के बीच होना है और शिवराज के मैनेजर्स ने शिवराज सिंह के विरोधियों को तबाह करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी थी। पूरी रणनीति के तहत कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया गया ताकि कोई विघ्न खड़ा ना हो और भी कई होमवर्क किए गए। पूरे तीन साल से चल रहा था यह सब।
लेकिन सिंधिया के आने से सब गुडगोबर होता दिखाई दे रहा है। पूरी कांग्रेस में अकेले सिंधिया ही एक ऐसा नाम है जिसे ना तो प्रेशर में लिया जा सकता है और ना ही मैनेज किया जा सकेगा। विकास की बातें और विकास के काम तो उनके खून में है। इसलिए मुकाबला बिल्कुल आसान नहीं हो सकता।
अब शिवराज के मैनेजर्स गणित गुंताड़े बिठाने में लगे हुए हैं। सिंधिया को कैसे निपटाए, कैसे उलझाएं, कहां फंसाए यह शिवराज एंड कंपनी में किसी को नहीं आता। पूरे मध्यप्रदेश में केवल एक ही व्यक्ति है जो सिंधिया को सीधा नुक्सान पहुंचा सकता है और वो है दिग्विजय सिंह।
शिवराज के मैनेजर्स को ध्यान में जैसे ही ये बात आई, उन्होंने इस दिशा में विचार प्रारंभ कर दिया है। इधर कांग्रेस हाईकमान ने दिग्विजय सिंह को प्रदेशबदर कर दिया है अत: संभावना पूरी बनती है कि गुस्साए दिग्विजय सिंह, शिवराज को कुछ टिप्स दे दें। अंधेरी रातों में राजनीति के मोहरे फिट करने में माहिर दिग्विजय सिंह भी स्वभाविक सिंधिया विरोध के चलते बहुत सस्ते में शिवराज को सपोर्ट कर सकते हैं।
संभावनाएं हैं, विचार चल रहा है। यह अपवित्र गठबंधन हो भी जाए तो कोई बड़ी बात नहीं, नहीं भी हुआ तो भी दिग्विजय सिंह कौन सा सिंधिया का समर्थन करने वाले हैं। बस अलग अलग रहकर करेंगे परंतु काम तो दोनों का एक ही होगा। सिंधिया का सफाया।
राजनीति का ... चाहे जिस करवट बैठे, लेकिन अब चुनाव का चेहरा बदल गया है। शिवराज एंड कंपनी विरुद्ध शिवराज विरोधी के बजाए मध्यप्रदेश में अब चुनाव सिंधिया समर्थक विरुद्ध सिंधिया विरोधी हो जाएगा।
चलते चलते फिर दोहरा दूं, शिवराज सिंह के मैनेजर्स में भाजपाई कम, प्रशासनिक अधिकारी, व्यापारी, ठेकेदार, कांग्रेसी और मध्यप्रदेश के कुछ मीडिया मुगल शामिल हैं। भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता तो बस चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाए घूम रहा है।