राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में चुनाव इस बार दिलचस्प होंगे | सामंतों और पूंजीपतियों के खिलाफ संघर्ष का दावा करने वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव महाराजा और राजा के नेतृत्व में लड़ेगी और भाजपा नये सामन्तवाद की छाया में | शिवराज का रथ पूरे मध्यप्रदेश में घूम रहा है |
रथ के आसपास भीड़ देखकर भाजपा चुनाव नतीजों को अपनी झोली में मान रही है, लेकिन दिल्ली अभी दूर दिखाई देती है | कांग्रेस भी इस गलतफहमी में है उसके सारे योद्धा महाराजा के नेतृत्व में यह लड़ाई जीत जायेंगे | मध्यप्रदेश की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले विश्लेषकों का मानना है कि अभी का दृश्य त्रिशंकु विधानसभा का है|
टिकिट बंटने तक दोनों ही खेमों बहुत कुछ हो चुका होगा | यहाँ से वहां आये गयों के साथ किये गये वादे भी छोटे लेकिन महत्व पूर्ण कारक है |बहुत सारे सन्गठन खुद, कुछ मीडिया के साथ और कुछ मीडिया से अलहदा सर्वे में जुटे हुए है | कोई कोई तो इनके - उनके लिए प्रायोजित कार्यक्रम भी बजा रहे हैं |
मध्य प्रदेश में बीते लगभग दो दशकों से कांग्रेस की राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (राजा) के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। राज्य कांग्रेस की राजनीति में वही होता आया है, जो सिंह ने चाहा। मगर अब हालात बदलने लगे हैं। कांग्रेस द्वारा अभी हाल ही में लिए गए फैसलों ने संकेत दे दिए हैं कि पार्टी के लिए केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (महाराजा) कहीं ज्यादा अहम हो गए हैं।
भारतीय जनता पार्टी का प्रादेशिक नेतृत्व अभी तक तो शिवराजसिंह के इशारे पर नरेंद्र सिंह तोमर के हाथों में है, पर रथ की कमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के हाथों में है | भाजपा के वरिष्ठ लोगों में आम चर्चा है कि शिवराज को कमान बदलना चाहिए | कुछ पूर्वाग्रह रथ को गलत दिशा भी दे सकते हैं | शांति पूर्ण “पोखरन” की तपिश अभी ठंडी नहीं हुई है |
समितियां, सम्मेलन,आशीर्वाद और प्रतिकार यात्रा के साथ टिकट वितरण भी एक महत्वपूर्ण कारक है, अभी तो समिति के सदस्य होने का पंख खोंसे लोग अपनी टिकिट की सोंचे | कभी-कभी टिकिट दिलवाने वालों का भी पत्ता साफ हो जाता है |