राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय संसद की स्वास्थ्य मंत्रालय से संबद्ध समिति की पिछले शुक्रवार संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट पर अविश्वास का कोई कारण नजर नहीं आता| इस समिति की रिपोर्ट यह साबित करती है कि दवा बनानेवाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इस देश के नागरिकों “गिनीपिग” समझ रखा है और देश की सरकार के साथ मध्यप्रदेश,गुजरात और आंध्र की सरकारें नींद में गाफिल है|
समिति ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि “पाथ” नामक एक अमेरिकी गैर सरकारी संगठन द्वारा गले के कैंसर से बचाव के टीके का प्रयोग 2009—10 में आंध्र और गुजरात में किया गया| गुजरात में दो और आंध्र में पांच लडकियों की मौत इसके कारण हुई | मध्यप्रदेश में भी ऐसे प्रयोग होने की पुष्ट जानकारी है, लेकिन परिणाम की स्वीकारोक्ति कहीं से पुष्ट नहीं हो रही है | इंदौर, भोपाल के कुछ चिकित्सकों के नाम जरुर मध्यप्रदेश की फ़ाइल में कैद हैं |
भारत सरकार की नींद तो सर्वोच्च न्यायलय की फटकार से भी नहीं टूटती है | चार माह पहले भारत सरकार उसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत आंकड़ों पर अगर गौर किया जाये, तो विगत सात वर्षों के दौरान ४७५ से अधिक दवाओं के परीक्षण और इसमें २५०० के लगभग मौतें हुई है | इन दवाओं में से मात्र १७ को भारत के बाज़ार में बेचने की अनुमति मिली है | शेष नाकाम दवाओं ने कितनी जानें ली, यह अनुमान ही सिहरन पैदा कर देता है | मौत के अतिरिक्त अन्य दुष्प्रभावों की तो गणना ही नहीं की गई है |
गले के कैंसर से बचाव का कथित टीका “पाथ” [प्रोग्राम फॉर अप्रोप्रियेट टेक्नोलाजी इन हेल्थ ]नामक एक अमेरिकी गैर सरकारी सन्गठन “मर्क” और “ग्लेक्सोसिमिथ्लेंन” की और से मुहैया कराती है |”पाथ” के कार्यालय भी नियमों को विपरीत भारत में खोले गये हैं | संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में “पाथ” की मंशा को भी उजागर किया है |समिति का कहना है कि “पाथ का मकसद व्यवसायिक हितों को साधना और इस टीके को भारत सरकार के टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल कराना है” नींद में गाफिल सरकारों अब तो जागो |