भोपाल। प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को नया स्वरूप देने के लिये राज्य सरकार द्वारा राज्य शिक्षा सेवा का गठन किया गया है। इसके गठन में यद्यपि लम्बा समय लिया गया है लेकिन इसके बाद भी इसमें विसगंतियों का अम्बार है और शिक्षा जगत में इसे लेकर हड़कम्प मचा हुआ है।
राज्य अध्यापक संघ म.प्र के मंडला जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर का मानना है कि राज्य शिक्षा सेवा की राह काफी हद तक आसान होती यदि इसके गठन के पहले अध्यापक संवर्ग का शिक्षा विभाग में संविलियन कर दिया जाता। आज की तारीख में जिस भी एडव्होकेट के आफिस में जाकर देखा जाये शिक्षक और अध्यापक बैठे देखे जा सकते हैं। याचिकाएं लगाने में पहले बाजी मार रहे हैं सहायक शिक्षक जिनका कहना है कि पदोन्नति न पाकर भले वे उश्रेशि न बन पाये हों लेकिन वे क्रमोन्नति के जरिये उश्रेशि का वेतन ले रहे हैं अतः उन्हैं एईओ की परीक्षा में बैठने का अवसर दिया जाये।
मिडिल स्कूल प्रधानपाठक की पीड़ा और भी बड़ी है कि अध्यापक को एचएम के बराबर लाकर खड़ा कर दिया गया है दोनों एक साथ परीक्षा में बैंठेगें और यदि कहीं अध्यापक बाजी मार ले गये तो वे उनके अधिकारी बन जायेंगें। इसलिये अध्यापक को एईओ के लिये मौका नहीं दिया जाये।
लेक्चरर को इस बात पर आपत्ति है कि हाईस्कूल के सौ प्रतिशत पदों पर उनका कब्जा था जिसे घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है। वे चाहते हैं हाईस्कूल प्राचार्य के लिये उनके अलावा किसी को मौका न दिया जाये।
इन सभी में वरिष्ठ अध्यापक सबसे ज्यादा अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं कि उनका तो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन ही गायब है एईओ भी नहीं बन सकते हैं। उनसे लोअर केडर सेकेण्ड क्लास आफिसर बन जायेगें और वे जहां के तहां रहेंगें। सिर्फ 25 प्रतिशत हाईस्कूल प्राचार्य के पद पर परीक्षा के माध्यम से अवसर मिल रहा है इस अवसर को वो नगण्य मानकर चल रहे हैं। सरकार खुद मान रही है कि वरिष्ठ अध्यापकों को राज्य शिक्षा सेवा में कम पदों पर आने का अवसर होगा इसलिये 30 वर्ष की सेवा अवधि उपरांत हाईस्कूल प्राचार्य के वेतनमान का मरहम लगाने की बात कही गई है वरिष्ठ अध्यापक इसे यह कहकर खारिज कर रहे हैं कि वे सभी को पदोन्नत होते देखते रहेंगें और खुद रिटायरमेंट की उम्र तक इस विशेष प्रोत्साहन का इन्तजार करेंगें।
स्कूल शिक्षा विभाग ने इस विशेष प्रोत्साहन वेतनमान को अतिरिक्त वेतनमान कह कर बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न कर दी है। वे अध्यापक अपात्र कर दिये गये हैं जो अभी अभी प्रमोशन से इस पद पर आये हैं जबकि उ.श्रै.शि. के लिये यह रास्ता खुला हुआ है ऐसें अध्यापक भी न्यायालय की शरण में जा रहे हैं।
संविदा से जो अध्यापक बने हैं लेकिन 5 साल नहीं हुये हैं वे भी दुखी हैं। बी.ई.ओ., बी.आर.सी. व सी.ए.सी इसलिये दुखी है कि उनका पद छिन रहा है वे चाहते हैं किसी तरह यह स्कीम फुस्स हो जाये तो वे अपने पद पर बने रहें। उधर स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने राज्य शिक्षा सेवा के गठन का प्रारूप बड़ी हड़बड़ाहट में बनाये हुये लगते हैं।
पहले तो 25 जुलाई 2013 को राजपत्र में राज्य शिक्षा सेवा का गठन बिना किसी रूल्स रेगुलेशन का हवाला दिये कर दिया। बाद में गलती का एहसास हुआ तो 22 अगस्त को बिना राजपत्र में प्रकाशन के ही म.प्र. शिक्षा सेवा (शाला शाखा) भर्ती तथा पदोन्नति नियम, 1982 में संशोधित कर ए.ई.ओ. के पदों को सीमित परीक्षा के चयन द्वारा जोड़ दिया गया है।
राज्य शिक्षा सेवा गठन के प्रारूप को ध्यान से देखा जाये तो उसमें गम्भीर त्रुटियां आसानी से देखी जा सकती है। बड़ी संख्या में कोर्ट में याचिकाएं लगने के चलते इसके क्रियान्यवन पर स्टे की भी सम्भावना बनी हुई है स्टे न भी हुआ तो नियुक्त्यिां न्यायालय के निर्णय के अधीन होने की पूरी सम्भावना है।