सरकार हमें शासकीय मजदूर घोषित क्यों नहीं कर देती: आम अध्यापक

अनिल नेमा। साथियों आपको याद होगा वह दुखद घटना जब स्थानांतरण न होने व वेतन की विसंगति के चलते एक संविदा शिक्षक वर्ग-3 ने भोपाल में चौ​थी मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी ,5000 रूपये प्रतिमाह की अपने गृह जिले से दूर नौकरी, परिवार का पालन पोषण, क्या इसका जिक्र मजदूर दिवस पर करना गैरलाजमी होगा।

एक संविदा शिक्षक की मौत की जबाबदेही कौन लेगा,जब इस बात को पत्र के माध्यम से मैनें माननीय मुख्यमंत्री जी को अवगत करवाया तो उन्होनें कहा जल्दी ही आपकी समस्या का समाधान होगा।

मंहगाई के इस दौर में संविदा शिक्षक भारी दबाव में हैं। एक तरफ तो सरकारी मनमानी से शिक्षक आहत हैं तो दूसरी और पारिवारिक दबाव भी इन पर हमेशा बना रहता है। समय पर वेतन नहीं मिल पाना इनकी परेशानी की सबसे बड़ी वजह है... ऐसे में बेचारे शिक्षक ना खुद के लिए कुछ कर पाते हैं ना ही परिवार के लिए... जिन्दगी भर नौकरी करने के बावजूद भी साईकिल, छतरी और झोले से इनका नाता नहीं टूट पाता है... आजकल संविदा शिक्षक सरकारी अनुबंधित मजदूर बन कर रह गए हैं, ये लोग इस्से उबरना चाहते हैं लेकिन इनकी कोई सुनने वाला भी तो नहीं है।मजदूर से भी बदतर जिन्दगी में जीवन यापन करने वाला संविदा शिक्षक अनेकानेक आर्थिक समस्या से ग्रस्त है।

गौरतलब है कि ग्रामीण अंचलों में पदस्थ संविदा साथियों के लिये मार्च,अप्रैल,मई ये तीन माह बहुतही कष्टपद होते है,प्रायःहोता ये है कि विघालयों में अलाटमेंट के अभाव में इन माह का वेतन तीन से चार माह बाद प्राप्त होता है ,घर का किराया,बच्चों की स्कूली फीस,वैवाहिक कार्यक्रम में आने जाने के कारण इन माहों में पैसे की आवश्यकता अधिक रहती है, ऐसी स्थिति मैं एक मात्र सहारा रहता है सूदखोर, ब्याज से पैसे देने वाले सेठ जी, साहूकर साहब ...

बेचारा संविदा शिक्षक आर्थिक साम्यावस्था बनाने के लिये इन सेठ जी, साहूकर साहब, सूदखोर की शरण में जाता है और ये लोग 10 से 15 प्रतिशत मासिक ब्याज पर पैसे उधार देते है, इन पैसों को चुकता करने में संविदा शिक्षक को 6 से 8 माह लग जाते है ।

एक अनुमान के मुतबिक यदि संविदा शिक्षक के घर की माली स्थिति ठीक नहीं है और वह अपने दम पर परिवार का पालन पोषण कर रहा है तो वह साल भर में कम से कम 8 से 10 हजार रूपया ब्याज हेतु सेठ जी, साहूकर साहब को दे देता है।

मजदूर दिवस पर मेरे सिर्फ एक प्रश्न है क्या अपने गृह जिले से दूर रहकर मंहगाई के इस दौर में 5000रूपये कमाने वाला शिक्षक गरीब रेखा में नही आता ? जब 200रूपये प्रतिदिन कमाने वाला प्रशिक्षित मजदूर गरीब है तो संविदा शिक्षक क्यो नहीं ?

क्या संविदा शिक्षक को भी 1रूपये किलो गेहू,2रूपये किलो चावल और 1रूपये किलो नमक की पात्रता नहीं है ।

मजदूर दिवस पर मेरा सरकार से विन्रम निवेदन है कि जब हम संविदा शिक्षक वर्ग 3 को अपने गृहजिले से दूर की नौकरी का आर्डर दे तो उसके साथ एक गरीब रेखा का पीला कार्ड भी दें जिससे वो 1रूपये किलो में गेहू, 2रूपये किलो में चावल खरीद कर पगार और सूतखोर के बीच आर्थिक सामजस्य स्थापित कर सकें ।

अनिल नेमा
आम अध्यापक

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