इनकी भी मजबूरी है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भले ही अभी संसद के चुनाव दूर हों और देश के हालात कोई और विषय सोचने में लगा हो, संसद, सरकार  की कारगुजारी के कारण प्रतिपक्ष चलने नहीं दे रहा है। कहीं प्रधानमत्री का मुद्दा हाथ से न खिसक जाये, इसको लेकर भाजपा में सबसे ज्यादा चिंता है।

श्रीमती सुषमा स्वराज जैसे ही आडवानी जी की पैरवी में बोलीं। नरेंद्र मोदी समर्थक फौरन सक्रिय हो गए। दिल्ली में मुख्यालय में मोदी समर्थक और उनके विरोधी दोनों है।

मोदी विरोधी खेमे ने कहना शुरू कर  दिया कि सोशल मीडिया  पर मोदी जी इसलिए छाए रहते हैं की उनके द्वारा नौकरी पर रखे गये स्टाफ ने सैकड़ो आई डी  बना रखी है और छोटी सी बात को भी वो बड़ी घटना में बदल देते है।

आडवानी जी के नाम को बड़ाने  से राजनाथ सिंह का खेमा भी खुश नहीं है। उनका मानना है की आडवानी जी भले ही अनुभव रखते हो परन्तु आयु की भी कोई सीमा है । जद यु के फार्मूले पर सबसे फिट बैठने का दावा भी एक कैम्प से आया है और वह है अरुण जेटली केम्प।

आडवानी जी चुप है, वे अभी कुछ कहना नहीं चाहते वे समय के इंतजार में है। हो सकता है आडवानी जी समझौता उम्मीदवार के रूप में कोई नाम आगे करें वह नाम मध्यप्रदेश से एक सांसद  का हो सकता है।

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