ऐसे कैसे होगा, किसानों का भला सोचिये

राकेश दुबे@प्रतिदिन। गजेन्द्र की चिता की आग जल ही रही थी की  उत्तर प्रदेश के योगेन्द्र ने फसल खराब होने और सिर पर सात लाख रुपये के कर्ज से परेशान होकर 120 फुट ऊंचे मोबाइल टॉवर से छलांग लगाकर जान दे दी। शुक्रवार को ही उत्तर प्रदेश में फसल की बर्बादी देख 25 और किसानों की मौत हो गई।

किसानों से ‘मन की बात’ कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे तौर पर सिर्फ भूमि अधिग्रहण विधेयक की चर्चा की थी । अब बेमौसम बरसात के चलते जब किसानों की आत्महत्या और मौत की खबरें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे इलाकों से भी आने लगी हैं, तो बात राहत और पैदावार की खरीद में ढील को लेकर उठने लगी है। प्रधानमंत्री ने सांसदों की बैठक बुला कर भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक पर ‘दुष्प्रचार’ से निपटने और पार्टी को किसान हितैषी साबित करने का जिम्मा नेताओं-कार्यकर्ताओं को सौंप दिया।

उधर कांग्रेस में उत्साह की लहर है। राहुल की वापसी से भी ज्यादा उन्हें खेती-किसानी, भूअर्जन की यह स्थिति अपनी राजनीतिक वापसी का अचूक फार्मूला लगती है। सैकड़ों खेमों में बंटे, गिरे-पड़े-मरे किसान संगठन भी जी उठे हैं। उनके दावे या मंशा पर शक नहीं करना चाहिए। कारण चाहे जो हों, पर पहली बार मीडिया भी फसलों की बर्बादी, किसानों की मौत और भूमि अधिग्रहण को चर्चा का विषय बना रहा है।

विधेयक  तो वास्तव में ऐसा  बना दिया गया  है कि अब यह न किसानों के लाभ का बचा है, न उद्योगों के, और कुल मिला कर देश की अर्थव्यवस्था उलझ गई है। जब संसद के शीतकालीन सत्र में घर वापसी और अतिवादी हिंदू संगठनों द्वारा दिए बयान पर प्रधानमंत्री से जवाब मांगने पर विपक्ष अड़ा तो भाजपा भी अड़ गई और इस जिद में संसद का सत्र खत्म होते ही उसने लपक कर अध्यादेश जारी कर दिया। जब सदन को छोड़ कर कई कानूनों को अध्यादेश के रास्ते लाने की आलोचना हुई और भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास अध्यादेश को किसान-विरोधी बताया जाने लगा तब सरकार ने कुछ और उलटा-सीधा काम कर दिया। कैसे होगा किसान का भला |

श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !