MP HIGH COURT ने जन्म प्रमाण पत्र के लिए मार्कशीट को भी वैलिड नहीं माना, एक गड़बड़ी से नौकरी चली गई

भोपाल, 10 नवंबर 2025
: जन्मतिथि के संबंध में कभी भी कोई विवाद हो तो मार्कशीट को सबसे वैलिड डॉक्युमेंट माना जाता है लेकिन यह एक अनोखा मामला है। एक गड़बड़ी के कारण नियुक्ति पत्र मिलने के बाद उम्मीदवार की सरकारी नौकरी चली गई। हाईकोर्ट ने भी मार्कशीट को वैलिड नहीं माना। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह एक ऐसा न्याय दृष्टांत है, जो पूरे भारत में जन्म तिथि से संबंधित विवाद में उल्लेखनीय रहेगा। 

राजकुमार बाल्मीकि बनाम पंजाब नेशनल बैंक

राजकुमार बाल्मीकि के लिए पंजाब नेशनल बैंक में स्वीपर की नौकरी एक बड़े अवसर की तरह थी। उन्होंने आवेदन किया, परीक्षा पास की और नियुक्ति पत्र भी हाथ में आ गया। लेकिन फिर, उनके ही दस्तावेज़ों के एक जाल ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया और मामला अदालत तक पहुँच गया। आइये, समझते हैं कि कैसे एक नौकरी का अवसर एक कानूनी मामले में बदल गया।

1. नौकरी का अवसर और उम्र का नियम

पंजाब नेशनल बैंक ने स्वीपर के पद के लिए एक विज्ञापन निकाला। इस नौकरी के लिए उम्र से जुड़े दो ज़रूरी नियम थे:
सामान्य आयु (General Age): आवेदक की उम्र 18 से 24 साल के बीच होनी चाहिए।
आरक्षित वर्ग के लिए छूट (Relaxation for Reserved Category): SC/ST श्रेणी के उम्मीदवारों को 5 साल की छूट दी गई थी, यानी वे अधिकतम 29 साल की उम्र तक आवेदन कर सकते थे, जिसकी गणना 01.01.2021 की तारीख के आधार पर की जानी थी।
चूंकि राजकुमार बाल्मीकि SC/ST श्रेणी से थे, इसलिए वे 29 साल की उम्र तक इस नौकरी के लिए योग्य थे।

2. आवेदन और अच्छी खबर

राजकुमार ने इस पद के लिए आवेदन किया। अपने आवेदन पत्र में, उन्होंने अपनी जन्म तिथि 20.07.1992 लिखी। इस जन्म तिथि के हिसाब से उनकी उम्र तय सीमा के अंदर थी। जल्द ही उनके लिए एक अच्छी खबर आई। उन्हें इस पद के लिए चुन लिया गया और 18.12.2021 को उन्हें नियुक्ति पत्र (Appointment Letter) भी मिल गया। अब बस उनके दस्तावेज़ों की जांच होनी बाकी थी।

3. डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन में एक बड़ी गड़बड़ी

नौकरी का प्रस्ताव मिलने के बाद, बैंक ने राजकुमार को सत्यापन (verification) के लिए अपने सभी आधिकारिक दस्तावेज़ जमा करने को कहा। जब बैंक ने उनके कागज़ों की जांच की, तो एक बहुत बड़ी गड़बड़ी सामने आई। उनकी जन्म तिथि अलग-अलग दस्तावेज़ों में अलग-अलग थी।
  • दस्तावेज़ (Document) - जन्म तिथि (Date of Birth)
  • मार्कशीट (Mark Sheet) - 20.07.1992
  • आधार कार्ड (Aadhar Card) - 20.07.1986
  • वोटर आईडी कार्ड (Voter ID Card) - 1983
  • रोजगार कार्यालय कार्ड (Employment Exchange Card) - 20.07.1986
इस गड़बड़ी का मतलब साफ़ था: उनकी मार्कशीट को छोड़कर, बाकी सभी दस्तावेज़ों के अनुसार वह नौकरी के लिए निर्धारित 29 साल की अधिकतम आयु सीमा से कहीं ज़्यादा बड़े थे। इस उलझन को दूर करने के लिए बैंक ने उनसे एक स्पष्टीकरण मांगा।

4. एक Affidavit और एक निर्णायक बयान

दस्तावेज़ों में इस अंतर को देखते हुए, बैंक ने राजकुमार से अपनी सही जन्म तिथि की पुष्टि करने के लिए एक शपथ पत्र (Affidavit) जमा करने को कहा। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि शपथ पत्र एक कानूनी दस्तावेज़ होता है जिसमें व्यक्ति शपथ लेकर कोई बात कहता है।

01.01.2022 को राजकुमार ने अपना शपथ पत्र जमा किया। उस शपथ पत्र में उन्होंने शपथ लेकर यह घोषित किया कि उनकी सही जन्म तिथि 20.07.1986 है।

शपथ पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि वे 15 दिनों के अंदर अपने आधार कार्ड और दूसरे दस्तावेज़ों में जन्म तिथि को ठीक करवा लेंगे। यह एक बड़ा विरोधाभास था।

उनके इस बयान का सीधा नतीजा यह निकला कि उनकी उम्र 34 साल से ज़्यादा साबित हो गई, जो नौकरी के लिए तय आयु सीमा से बहुत अधिक थी।

5. नौकरी का रद्द होना और अदालत का दरवाज़ा

जिस दिन राजकुमार ने अपना शपथ पत्र जमा किया (01.01.2022), उसी दिन बैंक ने उनकी नियुक्ति रद्द कर दी।बैंक के इस फैसले के खिलाफ राजकुमार ने उच्च न्यायालय (High Court) में याचिका दायर की। अदालत में दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं:

राजकुमार के वकील ने कहा: मार्कशीट में लिखी जन्म तिथि (20.07.1992) को ही सही माना जाना चाहिए था।
बैंक के वकील ने कहा: बैंक ने वही किया जो राजकुमार ने खुद शपथ पत्र में लिखकर दिया। जब उन्होंने खुद शपथ लेकर अपनी जन्म तिथि 20.07.1986 बताई, तो वे नौकरी के लिए अयोग्य हो गए।

तो अदालत ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया?

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के विद्वान न्यायाधीश श्री न्यायमूर्ति आशीष श्रोती ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और मामले को समझा। अदालत ने माना कि उम्र के सबूत के तौर पर मार्कशीट को स्वीकार किया जा सकता था। लेकिन, इस मामले में खुद राजकुमार ने अपने शपथ पत्र में एक अलग जन्म तिथि बताकर अपनी मार्कशीट का खंडन कर दिया।

अदालत ने यह भी पाया कि राजकुमार ने अपनी नियुक्ति रद्द करने के आदेश को सीधे तौर पर चुनौती भी नहीं दी थी, जबकि उन्हें ऐसा करने का मौका दिया गया था।

अदालत ने यह फैसला सुनाया कि चूँकि राजकुमार ने खुद शपथ पत्र देकर यह मान लिया था कि उनकी उम्र ज़्यादा है, इसलिए बैंक का उनकी नियुक्ति रद्द करने का फैसला गैर-कानूनी नहीं माना जा सकता।

अदालत के आदेश में दो और बातें सामने आईं:

1. राजकुमार की याचिका खारिज कर दी गई।
2. उस पद पर किसी और व्यक्ति को पहले ही नियुक्त किया जा चुका था।

7. इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

राजकुमार की कहानी हमें एक बहुत महत्वपूर्ण सबक सिखाती है। इस पूरे मामले का सार एक वाक्य में समझा जा सकता है:
आपके आधिकारिक दस्तावेज़ों में जानकारी का एक समान होना और एक शपथ पत्र (affidavit) का कानूनी महत्व बहुत ज़्यादा होता है।

शपथ पत्र सिर्फ एक कागज़ नहीं है; यह एक कानूनी बयान है जिसे बहुत गंभीरता से लिया जाता है। इस मामले में, राजकुमार का अपना ही शपथ पत्र उनके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत बन गया। यह सिर्फ़ इसलिए नहीं था कि उन्होंने एक अलग जन्म तिथि बताई, बल्कि इसलिए भी कि उनका बयान विरोधाभासी था। एक तरफ उन्होंने शपथ देकर कहा कि उनकी सही जन्म तिथि 1986 है, और दूसरी तरफ उन्होंने वादा किया कि वे अपने दस्तावेज़ों को ठीक करवाएंगे। इस विरोधाभास ने उनके दावे को कमज़ोर कर दिया और इसी वजह से उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी।
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