बाजीराव ना होते तो भोपाल, हैदराबाद का हिस्सा होता है- Amazing facts in Hindi

ज्यादातर लोग जानते हैं कि भोपाल अंग्रेजों के अधीन एक रियासत थी जिसे आजादी के बाद मध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यदि बाजीराव पेशवा नहीं होते तो रानी कमलापति का भोपाल, हैदराबाद का हिस्सा होता और यदि ऐसा होता तो स्वतंत्रता के समय सन 1947 में राजनीति के समीकरण काफी बिगड़ जाते। 

रानी कमलापति के बेटे की हत्या करने के बाद दोस्त मोहम्मद खान (कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) ने खुद को भोपाल का नवाब घोषित कर दिया था परंतु हैदराबाद के निजाम ने हमला करके भोपाल पर कब्जा कर लिया और उसके बेटे यार मोहम्मद खान को जमानत के तौर पर बंदी बना कर ले गया। दोस्त मोहम्मद खान की मृत्यु हैदराबाद के निजाम के अधीन काम करने वाले भोपाल के नवाब के तौर पर हुई। उसकी मौत के बाद हैदराबाद के निजाम ने उसके बेटे यार मोहम्मद खान को भोपाल का नवाब बना दिया। 

इधर बाजीराव पेशवा, मराठा सेना का नेतृत्व करते हुए दिल्ली तक पहुंच गए और मुगल सेना को हराकर पुणे की तरफ वापस लौट रहे थे। मुगल बादशाह अपनी हार से तिलमिला उठा। उसने हैदराबाद के निजाम से मदद मांगी और बाजीराव पेशवा को खत्म करने के लिए 70000 सैनिकों की सेना भेज दी। हैदराबाद के निजाम और मुगल बादशाह की संयुक्त सेना ने भोपाल में बाजीराव पेशवा को घेर लिया। 

बाजीराव को इसका अनुमान पहले से ही था इसलिए उन्होंने एक खास रणनीति के तहत अपने भाई चिमाजी को 10000 सैनिकों के साथ अलग कर दिया था। जैसे ही बाजीराव और हैदराबाद के निजाम की सेना आमने सामने आए, चिमाजी ने उनकी रसद और वाटर सप्लाई रोक दी। हमेशा की तरह बाजीराव ने निजाम और मुगल की संयुक्त सेना में इस कदर मारकाट मचाई कि उसकी दहशत हैदराबाद के निजाम में साफ दिखाई दी। 

24 दिसंबर 1737 को हैदराबाद के निजाम ने बाजीराव पेशवा के सामने घुटने टेक दिए और जीवन में फिर कभी भी मराठों के सामने युद्ध ना करने की कसम खाई। मुआवजे के तौर पर 5000000 रुपए दिए तब कहीं जाकर निजाम और मुगलों की सेना के सरदार यार मुहम्मद खान बहादुर, आसफ जाह मैं, सआदत अली खान मैं, सुल्तान मुहम्मद खान बहादुर, ईश्वरी सिंह, दीवान राजा अयामल और प्रताप सिंह जीवित छोड़ा गया। 

इतिहास में इस युद्ध को भोपाल का युद्ध (बैटल ऑफ भोपाल) कहा जाता है। इस युद्ध में हारने के बाद शर्त के अनुसार हैदराबाद का निजाम हमेशा के लिए भोपाल से बाहर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया। सन 1737 से लेकर 1818 तक भोपाल मराठा साम्राज्य का हिस्सा रहा और मार्च 1818 में नवाब नज़र मुहम्मद ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि ( एंग्लो-भोपाल संधि) करके भोपाल को ब्रिटिश इंडिया की रियासत घोषित कर दिया। 

मराठा साम्राज्य के इतिहास में बैटल ऑफ भोपाल को बाजीराव पेशवा की बेहतरीन रणनीति का उदाहरण बताया जाता है परंतु अपने इतिहास पर गर्व करने वाली मध्य प्रदेश की सरकार ने बैटल ऑफ भोपाल की याद में भोपाल शहर में कोई स्मारक आज दिनांक तक नहीं बनवाया। 

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