जबलपुर। आधुनिक युग के दूरदर्शी शिक्षक हैं ओशो। अब भले इस दुनिया में वे नहीं हैं, लेकिन उनका जिंदगी को देखने का नजरिया आज भी लोगों को राह दिखाने का काम कर रहा है। हमें अपने बच्चों को आध्यात्मिक बनाना चाहिए। मेडिटेशन सिखाना चाहिए ताकि वे अपने आप को समझ सकें और दुनिया को समझ सकें। ये विचार बॉलीवुड के मशहूर निर्माता-निर्देशक सुभाष घई ने व्यक्त किए। वे जबलपुर में आचार्य रजनीश के जन्मदिवस पर आयोजित ओशो अंतरराष्ट्रीय महोत्सव (Osho International Festival) में मीडिया को संबोधित कर रहे थे।
इस मौके पर सुभाष घई ने कहा कि वे ओशो के प्रशंसक हैं। पिछले 30 वर्षों से ओशो के वक्तव्य और उनके संदेश सुन रहे हैं। घई ने कहा कि वे ओशो के जीवन और उनके व्याख्यान पर फिल्म बनाने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि ओशो जैसे व्यक्तित्व पर फिल्म बनाने के लिए तैयारी बहुत ज्यादा करना होगी, इसलिए वे जल्द ही इस पर काम शुरू कर रहे हैं।
ओशो के नाम पर खुले यूनिवर्सिटी
निर्माता-निर्देशक सुभाष घई ने मीडिया के साथ चर्चा के दौरान जबलपुर और देश के अन्य स्थानों पर ओशो के नाम पर इंस्टीट्यूट्स और यूनिवर्सिटी खोलने का सुझाव दिया। उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा किए गए आयोजन की सराहना करते हुए मांग भी की कि जबलपुर ओशो की कर्मभूमि है। यहां उन्होंने आध्यात्म को आत्मसात किया, इसलिए यहां एक एजुकेशन इंस्टीट्यूट होना चाहिए। इसके अलावा लोगों को सलाह दी कि वे अपने बच्चों को ओशो के संदेशों से परिचित करवाएं, उनके वक्तव्य सुनाएं और मेडिटेशन के लिए प्रेरित करें, जिससे उनका नजरिया जिंदगी के प्रति बदले और से अंदर से भी मजबूत और सक्षम बन सकें।
सुभाष घई ने लोगों को ओशो के अनसुने किस्से सुनाए
जबलपुर के तरंग ऑडिटोरियम में शहरवासियों से मिलने पहुंचे फिल्म निर्देशक सुभाष घई ने ओशो महोत्सव में शामिल होने की खुशी जाहिर की। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने लोगों को ओशो के कुछ अनसुने किस्से भी सुनाए। इसके बाद मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि मीडिया और मीडियम को लेकर ओशो बहुत स्पष्ट थे। वे हमेशा अपनी बात लोगों को समझाने के माध्यम को ही मीडिया मानते थे। मीडिया के लिए यह बेहद जरूरी हो जाता है कि वह लोगों की बात समझे और फिर दूसरों को समझाए। उन्होंने कहा कि मैं ओशो का प्रशंसक हूं, न कि फॉलोअर। सुभाष घई ने का कि ओशो 20वीं सदी के पहले अध्यापक हैं, जिन्होंने देश और दुनिया को दृष्टिकोण बदलने की शिक्षा दी, उसके लाभ बताए लेकिन लोगों को उनके विचार समझ में नहीं आए। इसलिए ओशो को विद्रोही कहा गया और उनका विरोध भी किया गया, जबकि वे आने वाले समय के हिसाब से दुनिया को देखने की सीख दे रहे थे।