क्या दागी बाहर हो पाएंगे ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार चुनाव आयोग द्वारा जारी नये निर्देशों की काट खोज रहे हैं। चुनाव आयोग के प्रारूप इन उम्मीदवारों को गले की फ़ांस दिख रहे हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि के राजनेताओं पर नकेल कसने के मकसद से निर्वाचन आयोग ने हलफनामे का नया प्रारूप जारी कर दिया है। अब उम्मीदवारों को न सिर्फ यह बताना अनिवार्य होगा कि उनके विरुद्ध कितने आपराधिक मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं, बल्कि मतदान से अड़तालीस घंटे पहले अखबारों और टीवी चैनलों पर कम से कम तीन बार इससे संबंधित विज्ञापन भी प्रकाशित-प्रसारित कराने होंगे। वैसे अभी इसकी कोई काट ऐसे उम्मीदवार नहीं खोज सकें हैं।

संबंधित राजनीतिक दल भी इन नये निर्देशों की जद में आ गये है। उन्हें भी यह हलफनामा देना होगा कि उनके उम्मीदवार ने अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामलों की जानकारी जनता में प्रसारित कर दी गई है। वैसे निर्वाचन आयोग ने यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के आधार पर उठाया है, जिसमें उसने कहा था कि आयोग आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखे। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जनप्रतिनिधियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। हालांकि यह निर्देश पहले ही दिया गया था, पर सोलह को छोड़ कर अभी तक बाकी राज्य इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।

जन प्रतिनिधित्व कानून 2002 में ही यह प्रावधान कर दिया गया था कि हर प्रत्याशी को अपने खिलाफ दायर आपराधिक मुकदमों का विवरण देते हुए एक हलफनामा देना होगा। मगर ज्यादातर राजनेता या तो अपने खिलाफ दायर मुकदमों का विवरण देने से बचते या गोलमोल जानकारी देते देखे जाते हैं। अब उन्हें अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की जानकारी विज्ञापन के रूप में कम से कम तीन बार प्रकाशित-प्रसारित करानी पड़ेगी। इसके पीछे मकसद यह है कि इससे लोगों को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी मिले और वे मतदान करते समय आपराधिक छवि के लोगों को चुनने से बच सकें। बहुत सारे सामान्य मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती। वे प्राय: पार्टी की छवि से प्रभावित होकर उसके उम्मीदवार को वोट दे देते हैं। इसीलिए पार्टियों को भी इसमें शामिल किया गया है कि वे सुनिश्चित करें कि उम्मीदवार ने अपने बारे में जानकारी लोगों के बीच प्रसारित कर दी है।

अभी तक के अनुभवों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि निर्वाचन आयोग का यह कदम कितना प्रभावी साबित होगा। चुनाव खर्च को लेकर स्पष्ट नियम हैं, पर जाहिर है कि कोई भी उम्मीदवार उनका पालन नहीं करता। चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। इसी तरह उम्मीदवार और पार्टियां आपराधिक मामलों के विज्ञापन प्रकाशित कराने के मामले में कोई न कोई गली निकालने का प्रयास कर रहें तो हैरानी किस बात की। सब जानते हैं कि ऐसे नियमों का प्रतिनिधित्व पर कोई असर नहीं पड़ता। चुनाव जीत जाने के बाद किसी व्यक्ति को कानूनन उसके पद से हटाया नहीं जा सकता, जब तक कि उसके खिलाफ चल रहे किसी आपराधिक मामले में सजा नहीं सुना दी जाती।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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