मोदजी को तो हिंदी भी नहीं आती, माता सीता का नाम गलत लिख दिया

नई दिल्ली। देश का प्रधानमंत्री किसी की तरफ मुस्कुराकर देख भी ले तो उसका महत्व होता है। पीएम नरेंद्र मोदी नेपाल में थे। वो जनकपुर में 20वीं सदी के प्रसिद्ध जानकी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करने गए थे। पीएम मोदी ऐसे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने यह पूजा की। यहां उन्होंने एक ऐसी चूक कर दी जो इतिहास में दर्ज हो गई। मंदिर की विजिटर बुक में वो माता ​सीता को 'सिया' संबोधित करना चाहते थे परंतु उन्होंने 'सीया' लिख दिया। अब दुनिया भर के भाषा विशेषज्ञों के बीच मोदी की यह चूक चर्चा का ​विषय बन गई है। जो प्रधानमंत्री के पद और भाषा के महत्व को नहीं समझते वो सोशल मीडिया पर इसे बेतुका मुद्दा बता रहे हैं परंतु जो प्रधानमंत्री के पद और भाषा के महत्व को समझते हैं वो इसे एक गंभीर चूक मान रहे हैं। 

नेपाल की दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर पहुंचे पीएम मोदी एयरपोर्ट सीधे हिंदू देवी सीता के नाम पर बने जानकी मंदिर पहुंचे थे। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंदिर परिसर में मोदी का स्वागत किया। मंदिर में पीएम मोदी जिस वक्त पूजा कर रहे थे उस दौरान सीता और राम के भजन बजाए गए। जानकी मंदिर में षोडशोपचार पूजा केवल विशेष अतिथि ही करते हैं। इसमें तांत्रिक मंत्रोच्चार समेत 16 विधि-विधान से पूजा की जाती है।

पीएम मोदी ने जानकी मंदिर में विजिटर बुक में लिखा,‘जनकपुर धाम जाने की मेरी लंबे समय की इच्छा पूरी हो गई है। यह मेरे लिए इस तीर्थस्थल पर आने का एक यादगार अनुभव है जो नेपाल और भारत के लोगों के दिल में एक विशेष स्थान रखता है।’ हालांकि पीएम मोदी बुक में माता सीता (सिया) को गलती से 'सीया' लिख गए।

कांग्रेस भी अवसर का लाभ उठा रही है। कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा, 'पीएम जो सीता के नाम की दुहाई देते हैं वो पीएम सिया माता का नाम भी ठीक से नहीं लिख सकते?' उन्होंने कहा कि पड़ोसियों के साथ हमारी विदेश नीति कहां गई?

क्यों महत्वपूर्ण है जानकी मंदिर


जानकी मंदिर भगवान राम की पत्नी सीता का जन्म स्थान माना जाता है। सीता की याद में यह मंदिर 1910 में बनाया गया था। तीन तल वाला यह मंदिर पूरी तरह पत्थर और संगमरमर का बना हुआ है और यह मंदिर 4860 से अधिक वर्ग फुट में फैला हुआ है। भारत में इस मंदिर को तीर्थ स्थल बनाने की मांग उठती रहती है। भारत के कई कारोबारियों एवं राज्य सरकारों ने इस मंदिर को गोद लेने की पेशकश भी की है। 

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