
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार, जस्टिस कमलकिशोर और जस्टिस सारंग कोटवाल की पीठ ने कहा कि संबंधित घटनाक्रम क्रूरता की व्याख्या नहीं करता है। इसके साथ ही पीठ ने इस बात को रेखांकित किया कि पत्नी खुद भी बतौर शिक्षिका रोजगार करती है। पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'अपनी नौकरी के बाद भी वह मर्जी से सुबह-शाम खाना बनाती है। सुबूत बताते हैं कि वह काम से लौटते वक्त अमूमन रास्ते में सब्जियां भी खरीदती है। यह स्वाभाविक है कि वह खुद भी बहुत थक जाती होगी। इसके बावजूद वह परिवार के लिए खाना बनाती है और घर के अन्य दूसरे काम भी करती है।
दंपति की शादी 2005 में हुई थी और वे पति के माता-पिता के घर पर रह रहे थे। पति द्वारा दायर तलाक याचिका के मुताबिक, उसने दावा किया कि पत्नी देर से काम से लौटकर घर आती थी और उसके माता-पिता से झगड़ा करती थी। उसने कथित तौर पर आरोप लगाया कि उसकी पत्नी स्वादिष्ट खाना नहीं बनाती थी और वह इस बात पर हमेशा अड़ी रहती थी उसके (पति के) माता-पिता को घर से दूर कर दिया जाए।
पति ने दावा किया कि उसने 2006 में घर छोड़ दिया था, जबकि पत्नी ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि उसे घर में बंद कर दिया गया था। फैमिली कोर्ट में उसने (पति ने) अपने दावे की पुष्टि के लिए पिता को बतौर गवाह बुलाया, जबकि पत्नी ने अपने पड़ोसी और पति के चचेरे भाई को बुलाया। पड़ोसी ने अपनी गवाही में कहा कि महिला लगातार घर में काम करती रहती थी और अपने सास-ससुर के ताने सुनती थी। फैमिली कोर्ट ने 2012 में तलाक की अर्जी खारिज कर दी थी, जिसे पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने सभी सबूतों को ध्यान से पढ़ा और कहा कि पति और पत्नी दोनों ही उस दिन काम पर थे, इसलिए महिला और उसके सास-ससुर के बीच टकराव के लिए बेहद कम समय रहता था और पति के लिए भी इस बात गुंजाइश बहुत कम है कि वो पत्नी और सास-ससुर के बीच झगड़े का गवाह बन सके।