1971 के बाद पाकिस्तानी सरकार का शर्मनाक समर्पण | PAKISTAN NEWS

नई दिल्ली। आज पाकिस्तान में रहने वाला हर वो शख्स शर्मसार है जिसने एक लांकतांत्रिक सरकार के चुनाव में भाग लिया। जो कट्टरपंथी नहीं है और जो सड़कों पर हंगामे पसंद नहीं करते। क्योंकि पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार ने 2000 कट्टरपंथी प्रदर्शनकारियों के सामने समर्पण कर दिया है। कहा जा रहा है कि यह बिल्कुल वैसा ही शर्मनाक है जैसे 1971 में पाकिस्तान ने भारत के सामने किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कट्टरपंथी प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के आदेश दे दिए थे परंतु पाकिस्तानी सेना ने पालन नहीं किया और सरकार को बाध्य कर दिया कि वो प्रदर्शनकारियों की हर मांग मंजूर करे। इतना ही नहीं प्रदर्शनकारियों ने वापस जाने के लिए किराया भत्ता भी सरकार से वसूल किया और पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने अपने हाथों से प्रदर्शनकारियों को पैसे बांटे। 

इस्लामाबाद को रावलपिंडी से जोड़ने वाले फैजाबाद इलाके में जीटी रोड पर धरने पर बैठे मुट्ठी भर कट्टरपंथियों को खदेड़ने के लिए पाकिस्तान ने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। उलटे अपने खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई के दौरान उनके समर्थकों ने इस्लामाबाद के साथ-साथ देश के दूसरे हिस्सों में सड़कों पर उतरकर पाकिस्तान सरकार की नाक में दम कर दिया। ये कट्टरपंथी तत्व चुनाव के दौरान दाखिल किए जाने वाले हलफनामे की भाषा में संशोधन को लेकर कानून मंत्री जायद हामिद के इस्तीफे पर अड़े थे। वे इस मांग को लेकर नवंबर के पहले हफ्ते से ही धरने पर बैठे थे, लेकिन तब कानून मंत्री और सरकार का कहना था कि इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि हलफनामे में संशोधन की कथित गलती को ठीक कर दिया गया है।

ईशनिंदा विरोध के नाम पर मनमानी

धरने पर बैठे कट्टरपंथी हलफनामे में संशोधन को ईशनिंदा का मामला बताकर तूल दे रहे थे। पाकिस्तान में ईशनिंदा के खिलाफ बने दमनकारी नियम-कानूनों को न्यायसंगत बनाने की आवाज उठाने वाले आम तौर पर ईशनिंदक यानी अल्लाह की शान में गुस्ताखी करने वाले करार दिए जाते हैं। धरने पर बैठे कट्टरपंथी संगठनों के सदस्य यही प्रचारित कर रहे थे कि जायद हामिद ने अल्लाह की शान में गुस्ताखी करने की कोशिश की है, इसलिए कोई भी उनका खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा था। 

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया: प्रदर्शनकारियों को हटाओ 

चूंकि कट्टरपंथियों के धरने से इस्लामाबाद के लोग भी परेशान थे और रावलपिंडी के भी इसलिए हाईकोर्ट ने भी सख्ती दिखाई और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी। मजबूरन सरकार को धरने पर बैठे और बवाल कर रहे कट्टरपंथियों को खदेड़ने के लिए पुलिस उतारनी पड़ी। इस पुलिसिया कार्रवाई के पहले देश भर के टीवी चैनलों का प्रसारण भी रोक दिया गया और सोशल मीडिया को भी ब्लाक कर दिया गया। 

और भड़क गया आंदोलन, सेना बुलानी पड़ी

पुलिस का दावा था कि तीन-चार घंटे में धरने पर बैठे दो-तीन हजार लोग खदेड़ दिए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उलटे पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ कट्टरपंथी गुटों के समर्थक सभी बड़े शहरों में बवाल करने लगे। नतीजन सरकार ने सेना को उतारने का फैसला किया, लेकिन सेना ने सरकार के आदेश की अनदेखी कर दी। उसने कट्टरपंथियों को खदेड़ने के बजाय सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया कि वह कट्टरपंथियों से समझौता करे।

सेना ने कार्रवाई नहीं की, प्रदर्शनकारियों को पैसे बांटे

इतना ही नहीं, वह इस समझौते में मध्यस्थ भी बनी। ऐसे फोटो और वीडियो सामने आए हैं जिनमें सेना के अधिकारी धरने पर बैठे लोगों को घर जाने का किराया देते हुए दिख रहे हैं। इन वीडियों को देखकर लोग पूछ रहे हैं कि क्या शहर को बंधक बनाने और बवाल करने वालों को ईनाम बांटा जा रहा है? लोग ऐसे सवाल इसलिए भी पूछ रहे हैं, क्योंकि धरने की अगुआई कर रहे मौलाना मीडिया वालों के साथ जजों को भी गालियां बकने में लगे हुए थे। 

1971 के बाद पाकिस्तानी सरकार का समर्पण

इसे पाकिस्तान के एक और समर्पण के तौर पर देखा जा रहा है। इस बार कट्टरपंथियों के सामने। ध्यान रहे कि इसके पहले पाकिस्तान ने 1971 में भारतीय सेना के समक्ष ढाका में हथियार में डाले थे। इस पूरे प्रकरण में सबसे शर्मनाक यह रहा कि कानून मंत्री जायद हामिद को इस्तीफा देना पड़ा। 

सेना और सरकार के बीच राजनीतिक षडयंत्र

पाकिस्तान मामलों के जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान सरकार ने अपनी बेवकूफी से प्याज और जूते खाने वाली कहावत ही चरितार्थ की है। ये जानकार फौज के रवैये को भी संदेह से देख रहे हैं। उनका कहना है कि फौज अवाम के सामने सरकार को कमजोर दिखाना चाहती थी। हालांकि कुछ जानकार ऐसे भी हैं जो यह कह रहे हैं कि दरअसल सरकार ही यह चाह रही थी कि माहौल इतना खराब हो जाए कि फौज को सड़कों पर उतरना पड़े और उसकी कट्टरपंथियों से भिड़ंत हो जाए।

सरकार ने समर्पण कैसे कर दिया: हाईकोर्ट का सवाल
इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शौकत अजीज सिद्दीकी ने सोमवार को गृह मंत्री अहसान इकबाल को अदालत में तलब कर पूछा कि सेना को मध्यस्थता करने का अधिकार किसने दिया? हफ्तों से रास्ता रोके बैठे लोगों के आगे सरकार ने समर्पण कैसे कर दिया? मंत्री के यह बताने पर कि सेना के सहयोग से ही आंदोलनकारियों से समझौता हो सका, जस्टिस शौकत अजीज ने पूछा- सेना कौन होती है बिचौलिये की भूमिका निभाने वाली? कानून ने एक मेजर जनरल को यह अधिकार कहां पर दिया? क्या सेना प्रमुख कानून से ऊपर हैं? शर्मसार पाकिस्तान में इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं।

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