
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी कैबिनेट के तीसरे विस्तार में इन्हें मंत्री बनाया तो उसके तब दो मकसद दिख रहे थे। केरल में भाजपा की पैठ बनाने में काम आएंगे और अपने प्रशासनिक अनुभवों से सरकार की कार्यक्षमता बढ़ाएंगे। इसके विपरीत अल्फांस के ताजा निर्मम बयान ने मोदी के उस भरोसे के खिलाफ ही गोल कर दिया है। दरअसल, अल्फांस को पेट्रोल-डीजल के बेलगाम और अस्थिर होते दामों का कारण बताना था। जो न केवल दक्षिण एशिया के देशों में बल्कि पूरे विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा हैं।
मोदी सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि भारत से ही खरीद कर श्रीलंका जैसा छोटा देश 49 से 53 रुपये में पेट्रोल बेचता है, जबकि भारत में यह 81 से 72 रुपये में? ऐसे में जनता जानना चाहती है कि जब बाहर से तेल सस्ते में आ रहा है तो भारत में इतना महंगा क्यों बिक रहा है? लेकिन किसी मंत्री ने इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दिया है-पेट्रोलियम मंत्री ने भी नहीं।
अल्फांस को भी जनता में सरकार का पक्ष रखने का अवसर मिला था और वे यह समझने समझाने में असफल रहे की ऐसा क्या है जो ये कीमतें बढ रही है। उन्हें इतनी समझ तो होगी कि पेट्रो-डीजल में अतार्किक बढ़ोतरी सुशासन नहीं, घपला है। महंगा तेल वाहनों के भाड़े बढ़ाते हैं, जिनका दुष्परिणाम बुनियादी जरूरतों की चीजों के दाम आसमान छूने में होता है. यानी महंगाई बढ़ती है और इसके मारक क्षेत्र में वे जरूर पिस जाते हैं, जो क्रमश: 28 से 33 रुपये रोजाना की कमाई में गुजर बसर करते हैं।
अल्फांस समेत उनकी सरकार को यह मालूम ही है कि गरीबी रेखा से नीचे गुजर करने वालों की तादाद 40 करोड़ के लगभग है। लखपति-करोड़पति और अरबपति भी देश में बढ़े हैं, लेकिन उन्हें इससे फर्क क्या पड़ता है? ऐसे में टैक्स और तमाम विकास के काम का हवाला देकर गरीब जनता पर महंगाई का बोझ डालना, कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। ‘सबका विकास’ में जानलेवा महंगाई से राहत का वादा भी था, जिसे मोदी सरकार भूल रही है और उसके मंत्री आग लगाती टिप्पणियाँ कर रहे है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।