
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार पिछले साल जनवरी से अपने कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का लाभ दे रही है। वहीं राज्य सरकार ने अक्टूबर में राज्य के अधिकारियों-कर्मचारियों को सातवां वेतनमान देने की घोषणा कर रखी है। कुछ कर्मचारी नेता मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों, अफसरों से मिलकर सातवें वेतनमान की बात कर रहे हैं। पिछले एक माह में अलग-अलग संगठनों के कई नेता मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। पिछले शुक्रवार को अध्यक्षीय मंडल के पदाधिकारी भी मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं।
जितेंद्र सिंह, अध्यक्ष, मप्र अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा का कहना है कि पहले छठवें वेतनमान की विसंगतियां दूर हो। पांचवें वेतनमान की आज तक नहीं हुई। यदि सातवां वेतनमान विसंगति सहित लिया, तो कर्मचारियों को नुकसान होगा। मैं ही नहीं, कर्मचारी भी चाहते हैं कि अगला वेतनमान विसंगति रहित हो। हमारे साथ 21 संगठन हैं। सभी चाहते हैं कि विसंगतियां दूर हों। सभी से बात करके ही आंदोलन खड़ा किया है। विसंगतियां दूर होने से 2 लाख कर्मचारियों को वेतन और 1.12 लाख को ग्रेड-पे में लाभ होगा। इस पर 450 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। हमने तो संगठन की विचारधारा से इतर काम किया है। हम दूसरों की भीड़ दिखाकर अपनी मांगें पूरी नहीं कराते।
जबकि सुधीर नायक, अध्यक्ष, मप्र अधिकारी-कर्मचारी अध्यक्षीय मंडल कहते हैं कि ट्रेड यूनियन का सिद्धांत है कि पहले जो मिले ले लो। शेष के लिए मांग, धरना, प्रदर्शन, हड़ताल करो। कुछ विसंगतियां कभी दूर नहीं होती हैं, तो क्या सातवां वेतनमान ही न लें। पुरानी गलतियां सुधरवाने की बात कर रहे हैं। सरकार से लगातार बात करने से ही गलतियां सुधरेंगी। मंडल से जनाधार और जमीन पर काम करने वाले संगठन जुड़े हैं। इनके 90 फीसदी कर्मचारी चाहते हैं कि सातवां वेतनमान लें और विसंगति पर बाद में बात करें। हम प्रदेश के 4.63 लाख कर्मचारियों के लाभ की बात कर रहे हैं। सातवां वेतनमान सिर्फ मंत्रालय या राजधानी के कर्मचारियों को नहीं मिलना है। कुछ लोग सिर्फ नेतागिरी के लिए शोर मचा रहे हैं। असल में उन्हें अपने ऊपर वालों को दिखाना है कि वे कुछ कर रहे हैं। हम किसी भी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं।