देश विरोधी नारे: कहीं देर न हो जाये

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की शिक्षण संस्थाओं में इन दिनों जो कुछ चल रहा है उसे देख के लगता है की वहां  पढ़ाई-लिखाई के अलावा भी कुछ  चीजें चल रही है जो देश के भविष्य के लिए घातक हो सकती हैं। ऐसी जगहों से देश विरोधी नारे लगने से तो यही संदेश निकल रहा है कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है। सबसे पहले देश की राजधानी जेएनयू में देश विरोधी नारेबाजी हुई। अब कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू के थियोसोफिकल कॉलेज में एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यक्रम में देशविरोधी और सेना के खिलाफ नारेबाजी की खबर है।

आरोप है कि यहां कश्मीरी छात्रों ने ‘आजादी’ और पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी की थी। पुलिस ने ‘आजादी समर्थक’ कश्मीरियों द्वारा ‘आजादी’ के नारे लगाए जाने के सिलसिले में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने यूनाइटेड थियोजिकल कालेज में एक पैनल चर्चा का आयोजन किया था। कार्यक्रम में उस समय गड़बड़ी पैदा हुई, जब कुछ ‘आजादी समर्थक’ कश्मीरियों की कश्मीरी पंडितों के एक नेता के साथ गरमागरम बहस हुई। नेता ने भारतीय सेना की सराहना की थी।

जेएनयू में देश विरोधी गतिविधियों के बाद शिक्षण संस्थाएं और उनमें अध्ययनरत छात्र कैसे संदेह की नजर से देखे जा रहे थे और माहौल में किस तरह का कसैलापन आ गया था, यह किसी से छिपा नहीं है। अब पांच महीने बाद फिर से वैसा ही कुछ दोहराने का षड्यंत्र कुछ संकुचित मानसिकता वालों ने रची है। सरकार को बेहद संजीदगी से मसले को सुलझाना होगा। जो गलतियां सरकार और जांच एजेंसी की तरफ से जेएनयू वाले घटनाक्रम पर हुई थी, उससे सबक लेते हुए दोषियों का पर्दाफाश करना होगा। साथ ही राजनीति करने से भी बचना होगा। शिक्षण संस्थाओं के प्रमुख को भी अपने संस्थान की मर्यादा को बनाकर रखने का विचार मजबूती से करना होगा।

दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू वाले मसले पर सुनवाई के दौरान कहा था कि, ‘हमारे देश के सैनिक दुर्गम हालात में सियाचिन, कश्मीर और अन्य बॉर्डर पर देश की रक्षा करते हैं। ऐसे में अगर देश के किसी हिस्से में कोई देशविरोधी नारे लगाता है तो उनके मन को ठेस पहुंचती है। ऐसे देश में देशविरोधी नारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं माना जा सकता.’ इसे कंट्रोल करने की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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