
याचिकाकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह पूरा मसला दिल्ली हाईकोर्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश से जुड़ा है जिनमें सुप्रीम कोर्ट को आरटीआई के दायरे में होने की बात कही गई थी। इन आदेशों में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट को आरटीआई केतहत जजों की नियुक्ति सहित अन्य न्यायिक जानकारियां उपलब्ध करानी चाहिए।
क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सिद्धांत RTI के तहत जानकारी सार्वजनिक करने के आड़े आ रहा है?
प्रशांत भूषण ने कहा कि ऐसी धारणा बन रही है कि मामलों के निपटारे में देरी की वजह से न्यायपालिका अपने तंत्र में पारदर्शिता लाने से बच रही है। भूषण ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव लड़ाने वाले उम्मीदवारों को संपत्तियों का ब्योरा देने निर्देश देती है लेकिन बात जजों पर आती है तो वह पीछे हट जाता है। इस पर पीठ ने कहा कि किसी को जवाब देने में क्यों हिचकिचाना चाहिए। पीठ ने इस मसले को संविधान पीठ के पास भेज दिया है।
पीठ के संविधान पीठ के लिए यह प्रश्न छोड़ा है कि क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सिद्धांत सूचना के अधिकार के तहत जानकारी सार्वजनिक करने के आड़े आ रहा है? क्या जानकारी उपलब्ध कराने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होती है? मालूम हो कि नवंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।