चीन के बदलते स्वर

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाक अधिकृत कश्मीर की के लिए जिस शब्दावली का इस्तेमाल भारत करता है। अब अगर चीन भी उसके लिए वही शब्दावली का इस्तेमाल कर रहा है, तो यह एक महत्वपूर्ण बदलाव तो है ही। ग्लोबल टाइम्स न सिर्फ चीन की सरकारी पत्रिका है, बल्कि इसमें छपे लेखों को पूरी दुनिया में चीन की आधिकारिक नीति का महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता रहा है। इस पत्रिका अपने ताजे  अंक में कहा है कि कश्मीर समस्या भारत और पाकिस्तान को आपस में ही सुलझानी होगी, चीन की इसमें कोई भूमिका नहीं हो सकती|

स्मरण रहे कि र्पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का मामला उठाया था। 46 अरब डॉलर की लागत से बनने वाला यह कॉरीडोर चीन को पाकिस्तान के उस ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा, जिसे चीन की मदद से विकसित किया जा रहा है। यह कॉरीडोर पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, इसलिए भारत को हमेशा इस पर आपत्ति रही है। भारत का मानना है कि यह कॉरीडोर उस इलाके में बन रहा है, जो उसका है और पाकिस्तान ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा है, इसलिए इसका निर्माण गैर-कानूनी है। ग्लोबल टाइम्स के लेख से लगता है कि चीन अब इस कॉरीडोर पर भी अपना रुख बदल रहा है। अभी तक इसे चीन और पाकिस्तान की दोस्ती का सबसे अच्छा उदाहरण बताया जाता था। लेकिन अब चीन ने सुर बदल दिया है। अब वह कह रहा है कि यह किसी तीसरे देश को निशाना बनाने के लिए नहीं, बल्कि क्षेत्रीय विकास के लिए है और इससे पूरे कश्मीर का विकास हो सकता है। तर्क यह दिया गया है कि चीन के भारत और पाकिस्तान, दोनों से व्यापारिक रिश्ते हैं। ऐसे में, वह किसी एक देश के विरोध में कोई परियोजना कैसे बनाएगा? इस लेख में लगे हाथ भारत को यह सलाह भी दे दी गई है कि उसे इस कॉरीडोर पर आपत्ति करने की बजाय पाकिस्तान के साथ कश्मीर समस्या को सुलझाना चाहिए।

इन बातों से यह तो नहीं कहा जा सकता कि चीन का रुख पूरी तरह से उलट गया है, लेकिन उसमें नरमी के संकेत तो दिखने ही लगे हैं। पिछले काफी समय से चीन की विदेश नीति के दो रूप रहे हैं। उसका एक रूप क्षेत्रीय आक्रामकता का रहा है, और दूसरा रूप व्यापारिक रिश्तों पर आधारित रहा है। चीन अक्सर दोनों में संतुलन बनाने की कोशिश नहीं करता, बल्कि दोनों को एक साथ बनाए रखने की कोशिश करता है। दक्षिण चीन सागर के विवाद में जिन देशों के वह सीधे आमने-सामने है, उन देशों से भी उसके व्यापारिक रिश्ते पहले की तरह बरकरार हैं, बल्कि कई मामलों में उनका आपसी व्यापार बढ़ ही रहा है। यही भारत को लेकर भी है, सीमाओं के मामले में चीन दूसरे सुर में बात करता है, लेकिन जब व्यापार की बात आती है, तो उसका सुर दूसरा होता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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