
नासरा अंसारी के पिता की कबाड़ी की दुकान है। वे रोज दस से बारह घंटे मेहनत पर अपने परिवार को पालते हैं। नासरा अंसारी ने बताया कि वे रोज 8 से 10 घंटे पड़ती थीं। कई बार अब्बू से डिमांड करती थी कि मुझे ये चाहिए, मुझे वो चाहिए। उन्होंने कभी मजबूरी नहीं बताई और थोड़ी देर से ही सही मेरी डिमांड पूरी की। नासरा अब डॉक्टर बनना चाहती हैं। वे बताती हैं कि डॉक्टर बनकर गांव के लोगों की मदद करना चाहती हूं।
नासरा की ही क्लासमेट सायना मंसूरी भी इसी परिस्थिति में पली-बढ़ी हैं। उनके पिता किराये से ऑटो चलाते हैं। नासरा ने बताया कि वे जानती थीं कि मैरिट में जगह बनाएंगी। नासरा और सायना ने मप्र बोर्ड में 10वां नंबर हासिल किया है। उन्होंने बताया कि मेरी पढ़ाई देखकर अम्मी और अब्बू दोनों ही खूब मदद करते थे। स्कूल ने भी हमारी मेहनत को देखते हुए अलग से क्लासेस लगवाई। कोचिंग जाने के पैसे नहीं थे, इसलिए जो करना था स्कूल की पढ़ाई से ही किया।