भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही गंगा की तरह पवित्र प्रमाणित किए जाते रहें परंतु मप्र में भ्रष्टाचारियों के अपवित्र गठबंधन की काली करतूतें हर रोज उजागर हो रहीं हैं। ताजा मामला मुख्यमंत्री के विमान में फ्यूल घोटाले का है। जो मुख्यमंत्री की जान को जोखिम में डालकर किया गया।
इस घोटाले को तकनीकी जानकारी रखने वाले ही बेहतर समझ सकेंगे परंतु सरल शब्दों में कहें तो मुख्यमंत्री के विमान में घटिया दर्जे का फ्यूल भरवाया गया, जबकि बढ़िया दर्जे के फ्यूल का पेमेंट किया गया। इसके अलावा 43600 लीटर फ्यूल सिर्फ कागजों में खरीदकर उसकी रकम जीम ली गई। घोटाला 2002 से 05 तक के बीच हुआ। इसके बाद की रिपोर्ट आना बाकी है।
अब समझिए विस्तार से
जांच में विमानन संचालनालय के चीफ इंजीनियर संजय सुराना सहित कई अफसरों को जिम्मेदार माना गया है। विमानन संचालक अनंत सेठी ने प्रारंभिक जांच में शिकायत में दिए गए तथ्यों को सही ठहराते हुए रिपोर्ट सरकार को भेज दी है। सेठी ने माना है कि यह एटीएफ में घोटाला होने के साथ घटिया ग्रेड का फ्यूल उपयोग करने का मामला है।
अफसरों ने चंद रुपयों के लालच में मुख्यमंत्री की सुरक्षा ताक पर रखकर उनके विमान और हेलिकॉप्टर में घटिया फ्यूल (डी ग्रेड) भरवाया और इसे उड़ान पर जाने दिया। इतना ही नहीं अफसरों ने किराए के हेलिकॉप्टर लेने के नाम पर लाखों स्र्पए का जेट ए-1 टरबाईन फ्यूल (विमान पेट्रोल) का घोटाला भी किया।
इस पूरे मामले का खुलासा एक गुमनाम शिकायत में हुआ। शिकायत के साथ विमानन संचालनालय के गोपनीय दस्तावेज भी लगे हुए थे।
गायब हो गया 218 बैरल फ्यूल
शिकायत के मुताबिक भोपाल एयरपोर्ट स्थित मेसर्स इंडियन ऑयल कारपोरेशन लि. एयर फोर्स स्टेशन से अलग-अलग तारीखों में कुल 233 बैरल यानि 46600 लीटर जेट ए-1 फ्यूल खरीदने के नाम पर भारी गोल-माल किया गया था। संचालनालय के रिकार्ड में केवल 3000 लीटर एयर फ्यूल खर्च होने का हिसाब है। शेष 218 बैरल यानि 43600 लीटर फ्यूल खर्च का कोई हिसाब किताब संचालनालय के रिकार्ड में दर्ज नहीं है। यह कहां गया इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
क्या होता है डी ग्रेड फ्यूल
हर बैरल की तली में 15 से 20 लीटर फ्यूल छोड़ दिया जाता है, जिससे धूल के कण और फ्यूल में मिला पानी नीचे रह जाए। इसीलिए बैरल को रिफ्यूलिंग स्पॉट पर एक से दो घंटे तक सेट होने के लिए रखा जाता है।
जेट ए-1 फ्यूल को खरीदने के बाद 6 माह की अवधि में गुणवत्ता जांच कर ही उपयोग करना जरूरी है, अन्यथा इसे अनुपयोगी घोषित किया जाता है।
ऑयल कंपनी की लेबोरेट्री में भेजे गए सैंपल की ओके रिपोर्ट आने पर ही इसका उपयोग कर सकते हैं।
(आधार: डायरेक्टर जनरल सिविल एविएशन के सिविल एयर रिक्वायरमेंट रूल्स (कार) के निर्देश)
नियमों की अनदेखी
शिकायत के मुताबिक संचालनालय के अधिकारियों ने 1998 से जनवरी 2005 तक कुल डी ग्रेड फ्यूल 180 बैरल यानि 36000 लीटर स्टॉक में जमा होने के बावजूद इसे स्टॉक पंजी में दर्ज नहीं किया। ये डी ग्रेड फ्यूल विमान-हेलिकॉप्टर में भरवा दिया गया और पेट्रोल पंप की मिलीभगत से फर्जी बिल लगाकर लाखों स्र्पए का गबन किया।
जांच भी संदेह से परे नहीं
शिकायत की जांच खुद संदेह के घेरे में है, क्योंकि डी ग्रेड फ्यूल का उपयोग और रिकार्ड से 218 बैरल गायब करने वाले अफसरों की जांच विमानन संचालक को ही सौंपी गई है। इसकी एक वजह ये भी है कि यह मामला 2007 में चीफ ऑफ इंजीनियरिंग बृजराज सिंह ने तत्कालीन विमानन संचालक को नोटशीट लिखकर बताया था, लेकिन इसे दबा दिया गया। हाल ही में संचालनालय के अफसरों में आपसी विवाद के बाद गुमनाम शिकायत पर ये उजागर हुआ।
एक्सपर्ट व्यू : धूल के कण फिल्टर को कर सकते हैं ब्लॉक
डी ग्रेड फ्यूल के धूल के कण विमान या हेलिकॉप्टर के फिल्टर को ब्लॉक कर सकते हैं। फ्यूल में यदि पानी हो तो हेलिकॉप्टर या विमान में हादसे की आशंका रहती है। यही वजह है कि सिविल एयर रिक्वायरमेंट रूल्स में भी इसे प्रतिबंधित किया गया है। फ्यूल में पानी की जांच भी एक कैप्सूल से की जाती है और बतौर सावधानी बैरल में 20 लीटर फ्यूल छोड़कर भरा जाता है।
सीवी जॉर्ज, इंजीनियर हेलिकॅाप्टर विमानन संचालनालय
इस जांच रिपोर्ट का खुलासा नईदुनिया के पत्रकार श्री हरीश दिवेकर के किया है।