कुत्तों की जूठन बंटती है मध्याह्न भोजन में

राजगढ़। मामला सिर्फ एक ग्राम पंचायत का नहीं बल्कि 627 ग्राम पंचायतों के 1200 किचनशेडों का है। इनकी हालत इतनी बदतर है कि आप इसे रसोईघर तो किसी भी हालत में नहीं कह सकते, हां कचराघर जरूर कह सकते हैं। यहां मध्याह्न भोजन को आवारा कुत्ते मुंह मारते रहते हैं, उनकी जूठन बच्चों में बांट दी जाती है।

मिसाल नरसिंहगढ की बडी ग्राम पंचायत सीका तुर्कीपुरा है. तीन लाख की लाग्रत से 02 साल पहले बनवाया गया किचडशेड किसी बूचडखाने से कम नहीं है. सिर्फ 02 साल में ही वह खंडहर हो चुका है. छत ढहने की कगार पर आ चुकी है. उसका एक मात्र दरवाजा आधा सड़ कर टूट चुका है. आधा हिलगा हुआ है. दीवारों में दरारे आ चुकी है. आसपास गंदगी का साम्राज्य. इसी बूचडखाने में बनवाया जाता मन्धान्ह भोजन. बनते भोजन पर आवारा कुत्ते घात लगाए रहता है. भोजन बनाने वाली महिलाओं की हिम्मत नहीं कि वे भोजन की ताक में टूटे दरवाजे के पास खडे कुत्तों को भगा दे या उससे मुक्ति पा चैन से भोजन बना सके. अर्थात रसौइयनों की निगाह चूकी और कुत्तों की मुराद पूरी हुई.

यह अक्सर होता है लिहाजा दाल गला चुके कुत्तों की जूठन भी बच्चों को परोसना लाचारी लगती है. हैरत ये है कि किसी ग्रामीण या खुद को जागरूक जन प्रतिनिधि साबित करने वालों ने कभी भी इस अनहोनी या विसंगति पर न तो आपत्ति ली और न उसका कोई समाधान खोजा और न किचनशेड के नाम पर बूचडखाना बना सरकारी राशि गटकने वाले सरपंच के खिलाफ जबान खौली. राजगढ की 627 ग्राम पंचायतों में 12 सौ से ज्यादा किचनशेडों की ऐसी ही दुर्दशा है.

सवाल यह है कि जब भरपूर राशि किचनशेड बनाने के लिए सरपंचों को दी गई थी तो फिर इस तरह के किचनशेड बन कैसे गए। पैसा कहां गया ? क्यों ना नया शेड बनवाएं और पैसे की वसूली सरपंच सचिव के व्यक्तिगत खाते से करें, ना देने पर कुर्की का विकल्प भी है। जेल तो सरकारी है ही।

  • पत्रकार श्याम चौरसिया की रिपोर्ट


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