भिया इंदौरी तो प्रेम बांटता है

रंगपंचमी के दिन राजवाड़े में गेर के दौरान तीन महिलाओं के साथ जो कुछ हुआ... यदि पूरा सच है तो बेहद घृणित, निंदनीय और शर्मसार करने वाला है। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि हम तस्वीर का सिर्फ एक पहलू देखकर ही पूरे शहर को गुनहगार ठहरा रहे हैं।

गुरुवार को पकड़े गए आरोपी के बयान में यदि अंशमात्र भी सच्चाई है, तो यह समूचे शहर को दागी और लज्जित होने से बचा सकता है। आरोपी का कहना है कि उसके पैर पर उस महिला ने गाड़ी चढ़ा दी थी और जब उसने रोकने की कोशिश की तो वह नहीं रुकी, इसके बाद पूरा बवाल हुआ। घटना के बाद से ही पूरे इंदौरवासियों को शर्म महसूस हो रही है। जैसा चित्र उभरकर आ रहा है, उससे यूं लग रहा है मानो हम मालवा के सबसे खूबसूरत गढ़ में न रहकर किसी तालिबानी इलाके में रह रहे हों, जहां एक महिला अपनी बेटियों के साथ मदद की गुहार लगा रही हो और बर्बर लोगों का हुजूम उसकी जान लेने पर आमादा हो।

चूंकि घटना हुई थी और तस्वीरें भी थीं, इसलिए भरोसा हो रहा था, लेकिन जिस शहर की तासीर से हम बचपन से वाकिफ हों, जहां अतिथि देवता तुल्य समझा जाता रहा हो, जहां की मिट्टी 'पग-पग रोटी,डग-डग नीर' यानी अपरिचित को भी भोजन और पानी मुहैया कराने के लिए ख्यातिप्राप्त हो, वहां कोई ऐसा कर सकता है, मन ये मानने की बजाय खुद से ढेरों सवाल करता है।

जो हुआ, वो किसी तरह से क्षम्य नहीं है और ना ही उसके समर्थन में कोई तर्क दिए जा सकते हैं, मगर फिर भी कुछ अतिरेक में डूबे, उन्मादी लोगों की प्रतिक्रियावादी हरकत (यदि आरोपी की बात सच है तो) पूरे शहर को कठघरे में कैसे खड़ी कर सकती है? ऐसे अधीर, निरंकुश और छोटी-सी गलती पर बड़ी प्रतिक्रिया देने वाले युवाओं की तादात छोटे से छोटे कस्बे में बढ़ रही है। ऐसे सिरफिरों के आचरण पर बेशक विस्तार से बहस होनी चाहिए...उनको कड़ी सजा भी मिलना चाहिए...क्योंकि इस तरह की हरकत हमारी गेर परंपरा पर काला रंग उलीचती है, लेकिन ठहर कर यह भी सोचना पड़ेगा कि कहीं एक घटना मात्र से हम पूरे शहर के चरित्र पर तो कीचड़ नहीं उछाल रहे हैं...गेर कोई कल-परसों शुरू हुई हुड़दंगियों की कारगुजारी नहीं है...यह तो हमारी पहचान... सभ्यता... संस्कार...और तासीर से जुड़ी संस्कृति है... हर बार गेर में एक-दो नहीं, हजारों महिलाएं और युवा लड़कियां पूरे मन से शिरकत करती हैं। इस बार भी थीं।

इसीलिए जनाब... ये उन्मादी अपराधी भले ही हों, लेकिन पूरा इंदौर नहीं हैं....ना ही ये इंदौरियों के अगुआ हैं। भिया इंदौरी तो प्रेम बांटता है...आप उसकी तरफ स्नेह का एक कदम बढ़ाते हैं तो वो बदले में चार कदम आपकी तरफ बढ़ाकर आपको गले लगा लेता है। नारी के प्रति असीम सम्मान के कारण ही इंदौर देवी अहिल्या को मां कहता है और सुख-दुख में याद करता है।

  • इंदौर के प्रख्यात अखबार नईदुनिया की संपादकीय टीम के विचार


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