राकेश दुबे@प्रतिदिन। अजीब सा भ्रम फैल गया है| न्यायालय के आदेश की धज्जी बिखेरते भोंपू, सरकारी फायदे दिलाने के वादे, गली-गली डोलते मुख्यमंत्री, नीचे से उपर तक एक ही सरकार कि पैरवी| भोपाल नगर निगम चुनाव सच में महत्वपूर्ण लगने लगा| इस उहापोह किसे वोट दे और क्यों वोट दें जैसे सवाल भी उठे| किसे वोट दें इसका जवाब न तो पूछना चाहिए और न बताना ही चाहिए| वोट दें, यह जरुर बताना चाहिए| इससे शायद थोडा सा बाकी दिखता प्रजातंत्र जड़ पकड़ ले| विकल्प समाप्त करने के लिए तो वैसे भी पक्ष और प्रतिपक्ष खम ठोंके ही हुए हैं|
भोपाल नगर निगम के चुनाव कई मायनो में महत्वपूर्ण है| भोपाल चौक बाज़ार के एक सराफा व्यापारी भी इस संभ्रम में हैं|
एक महापौर प्रत्याशी को उन्होंने गोद में खिलाया है, वे उन्हें पिछली तीन पीढ़ियों से जानते हैं, उनका सवाल यह है कि 'मैंने कभी भैया को काम करते देखा सुना नहीं 3,46,79 808 कि सम्पत्ति कहाँ से आई?”
दूसरे महापौर प्रत्याशी को भी वे उस समय से जानते हैं, जब वे भोपाल में आये और अपना काम धंधा शहीद नगर में शुरू किया| इन समृद्धि चिंतक महाशय को उत्तर देने या उनका संभ्रम दूर करने का अपने माद्दा नहीं है|
भारत सरकार से सेवा निवृत्त एक बड़े अधिकारी भी इसी प्रकार के पशोपेश में है| उनका सवाल प्रतिभा से जुड़ा है कि 1987 में सैफिया कालेज से बीकाम के बाद 1997 में एमएससी बाटनी का इम्तिहान कैसे दिया जा सकता है ? उनकी उलझन का जवाब है यह मध्यप्रदेश है यहाँ तो इन दिनों कुछ भी हो सकता है ?
लेकिन, इन बातों का चुनाव पर असर होता है ? नहीं| चुनाव पर उन बातों का ही असर नहीं हो रहा जो जरूरी हैं और बकायदा कानून है लेकिन, इस चुनाव में कुछ खास बात है तभी तो सब तरफ का जोर लग गया है| आपके लिए समझने की बात सिर्फ इतनी है कि 31 जनवरी को “वोट करें, चाहे उसकी शक्ल “नोटा” की हो|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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