भोपाल। मध्यप्रदेश में बच्चों को बढ़ाने वाले शिक्षक और अध्यापक के बीच 18161 रुपए का अंतर है। कम से कम मध्यप्रदेश शासन की वेतनवृद्धियां तो यही बतातीं हैं। शासन ने पिछले 15 साल में जहां सहायक शिक्षक के वेतन में 25472 रुपए की वृद्धि की है वहीं सहायक अध्यापक के वेतन में यह वृद्धि महज 7311 रुपए ही है।
प्रदेशभर में अध्यापक आंदोलन वास्तव में 15 वर्षों से उनके हो रहे आर्थिक शोषण का परिणाम है सरकारी समानता लाने के बजाय अध्यापकों के वेतन में किये गये आंशिक वेतन वृद्धि को आधार बताकर श्रम पैदा कर रही है। जबकि आज 15 वर्षों में नियमित सहायक शिक्षक व सहायक अध्यापक की वेतन वृद्धि को देखें तो भयंकर अंतर है।
सहायक अध्यापक की वेतन स्थिति 1998 में जहां 2256 थी वहीं 1998 में सहायक शिक्षक की स्थिति 5578 थी जो 15 वर्ष बाद वर्तमान में सहायक शिक्षक को अप्रेल 2012 में 31020 वेतन मिल रहा है तो सहयक अध्यापक को मात्र 9567 रुपये।
इस तरह एक ही विभाग एक ही काम कर रहे फिर भी 16 वर्ष में सहायक अध्यापकों के वेतन में मात्र 7311 रुपये की अल्प वृद्धि तो सहायक शिक्षक के वेतन में 25453 रुपये की वृद्धि। इतनी असमान वेतन वृद्धि आजादी के बाद शायद मध्य प्रदेश में नही शिक्षकों के मामले में हुई होगी।
उक्त विषय पर अध्यापक संयुक्त मोर्चे के संस्थापक संरक्षक मनोज मराठे ने बताया कि यह अन्तर केवल यहीं पर नही है। हमारे संवर्ग को तो चतुर्थ श्रेणी से भी कम वेतन मिलता है। जहां इस श्रेणी को 1998 में 3500 रुपये वेतन तो सहायक अध्यापक को 2256 रु. मिलता था। तो वर्तमान में चतुर्थ श्रेणी को 15755 रु. तो सहायक अध्यापक को 9567 रु. अर्थात पद व सेवा उच्च व वेतन कम।
यही नही श्री मराठे ने आगे बताया कि अध्यापक संवर्ग को 12 साल की क्रमोन्नति में 25 रु. प्रतिमाह के साथ तो दूसरी ओर अंशदायी पेंशन योजना के जमा पैसे कहां होते हैं पता नहीं। इसी तरह वर्ष 2002 तक नियुक्त सभी कर्मचारियों को पेंशन की पात्रता है फिर हमारी नियुक्ति 1998 से है हमें पेंशन क्यों नहीं।
इन सब विषयों को लेकर संयुक्त अध्यापक मोर्चे के मनोज मराठे, जुनैद शेख, वाडिले जी, मुश्ताक खान, विट्ठल चौधरी आदि ने प्रदेश सरकार से इस प्रकार के आर्थिक व सेवा असमानता विषय पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए उचित निर्णय लेकर अध्यापकों की हड़ताल समाप्त करने की मांग की है।