जिस देश का बचपन भूखा हो, उसकी जवानी ...!

राकेश दुबे@प्रतिदिन/ वाह रे, मेरी सरकारें विज्ञापन दे रही हैं-“ देश का हर दूसरा बच्चा कुपोषित है”,“बेटी बचाओ तभी आपके बेटे को बहू मिलेगी।” मनमोहन सरकार और शिवराज सरकार ने  इस पर करोड़ों रुपयों का प्रावधान किया है। दोनों ही सरकारें दस-दस साल से सत्ता पर काबिज़ हैं।

मध्य प्रदेश में अपने को “बेटियों के मामा” कहलाकर प्रचार-सुख पाकर आत्ममुग्ध होने वाले मुखिया के राज में  प्रदेश में हुए दुष्कृत्य के आंकड़ों पर भी जरा गौर करें। देश का हर दूसरा बच्चा कुपोषित मानने वाली मनमोहन सरकार के राज्य में इतने घोटाले हए हैं और महंगाई बढ़ी है कि आम आदमी को रोटी खाना मुश्किल हो गया है |

अब जरा वास्तविकता पर गौर करें। केन्द्रीय योजना आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 27 रूपये कमाने वाला आदमी गरीब नहीं है। दूध का भाव उन्हें नहीं मालूम है। 30 रूपये लीटर। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में एक बच्चे के लिए मानक आहार में 200 ग्राम अनाज ,200 ग्राम सब्जी, 200 ग्राम फल और आधा लीटर दूध वर्णित है। लाखों रूपये से मूत्रालय बनवाने वाले मोंटेक सिंह अहलुवालिया इसकी कीमत जोड़कर देश के प्रधानमंत्री और भूतपूर्व अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को बताएं कि इसकी कीमत कितनी चुकानी होगी। वहीं, माँ को सुरक्षा न दे सकने वाले मामा के बारे में भांजियों ने भी सवाल खड़े कर रखे हैं।

दोनों ही मामलों में एक-एक कहावत उभर कर आ रही है “बिना दूध के बच्चे पालने की कोशिश” और मथुरा के राजा की तरह “आठवीं संतान का इंतजार।” जरा कल्पना करें कि 2050 में देश की जवानी के पास कमजोर युवा और युवतियां होंगी। तब हम बड़बोलेपन को रोयेंगे या कालेधन की तिजोरी को चाटेंगे। चुनाव के लिए घोषणा—पत्र आप दोनों बाद में लिखना, अभी तो यह बताओ कि दस साल में क्या किया?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं ख्यात स्तंभकार हैं।)
If you have any question, do a Google search

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!