सुखी रहना है तो साफ़ कहने की आदत भी तो डालिए

आप को तीन घंटे पहले फोन किया था। मैं तब से आप के जवाब का इन्तजार कर रहा हूँ, अभी तक आप ने बताया ही नहीं कि जो जानकारी चाही थी उसका क्या हुआ। क्या यह मान लूं कि  आप ने मेरी बात की गंभीरता नहीं समझी। फोन पर चल रहे इस वार्तालाप के दौरान उस तरफ से सफाई दी जा रही थी कि आप के फोन से पहले आप के ही सहायक ने भी इस मामले में जानकारी उपलब्ध कराने को कहा था, जितनी भी जानकारी मिली  उन्हें तुरंत मोबाइल पर ही बता दिया था। मुझे लगा की या तो आप उनके साथ ही बैठे हैं या उन्होंने आप को जानकारी दे दी होगी। 


तो आप ने सब अपने मन से ही तय कर लिया की ऐसा हुआ है तो ऐसा किया होगा। आप ने उन्हें बताया और उन्होंने मुझे बता दिया होगा। आप ने सारे अनुमान लगा लिए लेकिन यह नहीं सोचा की जब मैंने आप को फोन किया था तो मुझे भी वही सारी जानकारी देना चाहिए जो आप ने मेरे मातहत को दी। आप के लिए मुझ से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरा मातहत हो गया। यानी आप की नजर में मेरे फोन, आप के मेरे वर्षों के आत्मीय संबंधों, मान-सम्मान का कोई मतलब नहीं रहा। आप इन सारे संबंधों को भूल कर अब अपने नए सम्बन्ध बनाने में लगे है। आप बनाइये अपना फ्रेंड सर्कल लेकिन यह तो मत भूलिए की कौन आप के लिए ज्यादा नजदीकी है और क्यों संबंधों का निर्वाह आँख मूँद कर कर रहा है। आप पर किसी ने विश्वास किया है तो आप उस विश्वास को खंडित तो मत करिए।  

मित्र के रूम में मैंने जब प्रवेश किया तब यह वार्तालाप चल रहा था, मित्र खाना भी खाते जा रहे थे इस कारण फोन पर चर्चा के लिए उन्होंने माइक ओन कर रखा था। बिना कोई आवाज किए मैं उन दोनों में चल रहा वार्तालाप सुन रहा था। उन की बात ख़त्म  हुई, मैं कुछ पूछू इसके पहले खुद उन्होंने बताया की अपने भाई समान मित्र से उन्होंने कोई महत्वपूर्ण जानकारी माँगी थी। 

उस दोस्त ने उन्हें जानकारी देने की अपेक्षा उनके ही एक अन्य साथी को जानकारी दे दी। उन्हें इस बात की नाराजी नहीं थी की उस सहायक को जानकारी क्यों दी, गुस्सा था तो इस बात का कि कम से कम वही सारी जानकारी उन्हें भी तो देते, क्योकि वे करीब तीन घंटे से फोन के इन्तजार में बैठे थे। जिस सहायक को जानकारी दी थी उसने भी इन्हें नहीं बताया। इस सारे वार्तालाप का खुद मैं कानों सूना (जैसे चश्मदीद) गवाह बन गया था इसलिए मुझे लगा की मित्र की नाराजी ठीक थी, इसलिए उस तरफ से दी जा रही सफाई उनके लिए बेमानी थी। 

हमारे घर-परिवार में भी तो ऐसी ही असावधानियां आपसी मनमुटाव और उकले हुए दूध में नीबू की बूँद सा काम करती हैं। कई बार तो हम अनुमान के आधार पर ही अपने लोगों के सम्बन्ध में मनचाहा अनुमान लगा लेते हैं जिसका नतीजा तब घातक हो जाता है जब हम उस दूसरे पक्ष से सत्यता समझने का प्रयास नहीं करते। उक्त घटनाक्रम में भी यदि दोनों मित्रो के बीच यह लम्बी चर्चा नहीं होती तो इनमें गलतफहमी की वह छोटी सी घटना इतना बड़ा पहाड़ बन जाती की दोनों फिर उसकी उंचाई पार नहीं कर पाते। 

बेहतर तो यही हो सकता है की गलतफहमी के हालात बने नहीं और ऐसे हालात के आसार नजर आएं तो सबसे उत्तम यहीं हो सकता है की संबंधों का तानाबाना उलझे उससे कही पहले अपने किसी साथी-परिजन के कार्य व्यवहार को लेकर मन में कुछ चल रहा है उसे शब्दों से व्यक्त भी कर दे। हो सकता है की भावना व्यक्त करते हुए बोली तीर सामान और जुबान धारदार हो जाए लेकिन इससे फिर अंत में नासूर नासूर बन जाने वाले जख्म तो नहीं होगे क्योकि आप जब तक अपने विचारों को व्यक्त नहीं करते तो आप के साथ उठने-बैठने वालों को भी कैसे पता चलेगा की आप के चेहरे पर जो नजर आ रहा है वह खुद आप के मन से मेल नहीं खा रहा है। 

साफ़ कहना सुखी रहना वर्षों से सुनते तो आए हैं लेकिन इसके पालन से अब हिचकिचाने लगे हैं तो इस लिए की हम अपनों को खोना नहीं चाहते लेकिन यह भूल जाते हैं की मन में घुटते रहने से कहीं बेहतर है आत्मा की आवाज को अभिव्यक्ति देना। साफ़ कहने की आदत होगी तो लोगों को भी माफ़ करने का सलीका आ जाएगा। 

"लेखक कीर्तिराणा देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं इन दिनों भोपाल से प्रकाशित हिन्दी दैनिक दबंग दुनिया में बतौर संपादक सेवाएं दे रहे हैं। "

kirtiranaji@gmail.com

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