भारतीय न्याय व्यवस्था में यह मामला एक उदाहरण के रूप में दर्ज किया जाएगा। ग्वालियर में रहने वाले एक रिटायर्ड चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (चपरासी) ने ₹150 की घड़ी चोरी मामले में खुद को निर्दोष साबित करने के लिए 49 साल तक ग्वालियर से झांसी अप डाउन किया, लेकिन जब न्याय लड़ने की शारीरिक क्षमता समाप्त हो गई तो कोर्ट में खड़े होकर इसलिए जुर्म कबूल कर लिया क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से उसके खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं किया जा रहा था।
एलएसएस सहाकारी समिति झांसी का मामला
उत्तर प्रदेश के झांसी में टहरौली थाना क्षेत्र के बमनुआ गांव स्थित एलएसएस सहाकारी समिति में मध्य प्रदेश के ग्वालियर निवासी कन्हैयालाल पुत्र गजाधर चपरासी के पद पर काम करते थे। उसके साथ लक्ष्मी प्रसाद व रघुनाथ कर्मचारी थे। साल 1976 में तत्कालीन सचिव बिहारीलाल गौतम ने टहरौली थाने में तीनों के खिलाफ रसीद बुक और 150 रुपए कीमत की घड़ी चोरी की शिकायत की थी। फिर रसीद बुकपर सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर कर उक्त लोगों ने 14472 रुपए वसूल किए। लक्ष्मी प्रसाद ने 3887.40 रुपए की रसीद काट दी। उत्तर प्रदेश पुलिस ने चोरी व गबन का मामला दर्ज कर तीनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पुलिस ने कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया। और तीनों को जमानत दे दी गई।
इसके बाद शुरू हुआ तारीख पर तारीख का सिलसिला। घटना के 47 साल बाद, जबकि तीन में से दो आरोपी लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ की मृत्यु हो चुकी थी, 23 दिसंबर 2023 को आरोप तय किए गए। लेकिन इसके बाद भी बहस शुरू नहीं हुई। तारीख पर तारीख बढ़ती रही। कन्हैयालाल हर तारीख पर ग्वालियर से झांसी आता और फिर वापस चला जाता है। शनिवार, दिनांक 2 अगस्त 2025 को कोर्ट में तारीख होने पर कन्हैया लाल कोर्ट पहुंचा और सुनवाई के दौरान उसने हाथ जोड़कर न्यायाधीश से कहा कि "जज साहब, मैं बहुत बीमार हूं और बूढ़ा भी हो गया हूं। 49 साल से कोर्ट में तारीख कर रहा हूं। अब और तारीख करने की स्थिति में नहीं हूं इसलिए अपना जुर्म कबूल करता हूं। कृपया सजा सुना दीजिए।
न्यायाधीश महोदय भी मामले की संवेदनशीलता को समझ गए थे। उन्होंने कन्हैया लाल द्वारा घटना के बाद जेल में बताई गई अवधि को ही सजा में समायोजित करके ढाई हजार रुपए जुर्माना भरने का आदेश दिया। तब कहीं जाकर मामला खत्म हुआ। खुद को निर्दोष साबित करने के लिए 49 साल से कानून की लड़ाई लड़ रहा कन्हैयालाल, इसलिए कर घोषित हो गया क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार उसके खिलाफ कोई सबूत पेश ही नहीं कर रही थी।
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