climate change ने भारत के सामने अभूतपूर्व चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। भीषण गर्मी (heatwave), humidity, और अनियमित मॉनसून ने न केवल जनजीवन को प्रभावित किया है, बल्कि अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भी गहरा असर डाला है। पारंपरिक रूप से ठंडे क्षेत्र जैसे अरुणाचल प्रदेश और केरल भी अब इसकी चपेट में हैं। weather systems में बदलाव और अपर्याप्त हल्कुलन योजनाओं के कारण यह स्थिति और जटिल हो गई है। भारत के लिए अब तत्काल कदम उठाना अनिवार्य है, जिसमें climate-resilient infrastructure, प्रभावी heat action plans, और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता शामिल है। यदि समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो सिर्फ 10 वर्षों में यह संकट और गंभीर रूप ले लेगा।
प्री-मानसून के समय लगातार पांच दिनों तक रेड अलर्ट
उत्तर भारत, मध्य भारत और पूर्वी भारत इन दिनों भीषण गर्मी (heatwave) से जूझ रहे हैं। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में तापमान (temperature) 44 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच चुका है। भारत मौसम विभाग (IMD) ने लगातार पांच दिनों तक रेड अलर्ट (red alert) जारी किया है। यह मौसमी संकट केवल तापमान की बात नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन (climate change) के गहराते प्रभावों की कहानी बयां करता है।
पहले बारिश, अब तपिश – बदलता मौसम पैटर्न
इस सीजन में शुरुआत में बारिश (rainfall) और बादलों के कारण तापमान सामान्य से कम रहा। दिल्ली में मई 2025 में रिकॉर्ड 186.4 मिमी बारिश दर्ज की गई। लेकिन जून के पहले सप्ताह से स्थिति अचानक बदल गई। पश्चिमी विक्षोभ (western disturbances) की कमी और थार रेगिस्तान से उठने वाली सूखी गर्म हवाओं (hot winds) ने उत्तर भारत को तपाने का काम किया है।
जलवायु परिवर्तन से बदले मौसमी सिस्टम
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल की भीषण गर्मी केवल मौसमी उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि ग्लोबल वॉर्मिंग (global warming) के कारण मौसम प्रणाली (weather systems) में आए बदलाव का परिणाम है। स्काइमेट वेदर (Skymet Weather) के महेश पलावत बताते हैं, “इस बार मॉनसून (monsoon) की गति धीमी है और शुष्क उत्तर-पश्चिमी हवाएं लगातार चल रही हैं। इससे न केवल तापमान बढ़ा है, बल्कि आर्द्रता (humidity) भी असहनीय स्तर पर पहुंच गई है।”
डॉ. के.जे. रमेश, पूर्व महानिदेशक, IMD, कहते हैं, “ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हवा की नमी (moisture) धारण करने की क्षमता हर 1°C तापमान वृद्धि पर 7% बढ़ जाती है। यही कारण है कि सूखे इलाकों में भी उमस (humidity) बढ़ रही है, जिससे गर्मी का प्रभाव जानलेवा (lethal) हो गया है।”
नए इलाके भी चपेट में
हालिया स्टडी ‘Shifting of the Zone of Occurrence of Extreme Weather Event—Heat Waves’ के अनुसार, हीटवेव (heatwave) अब केवल राजस्थान या विदर्भ तक सीमित नहीं है। अरुणाचल प्रदेश, केरल और जम्मू-कश्मीर जैसे पारंपरिक रूप से ठंडे क्षेत्रों में भी पिछले दो दशकों में हीटवेव देखी गई है।
1981 से 2019 के बीच उत्तर भारत में “थर्मल डिसकम्फर्ट डेज़” (thermal discomfort days) की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
हवा की चाल भी बनी मुसीबत
नए शोध बताते हैं कि उत्तर भारत में प्री-मॉनसून महीनों (मार्च–मई) में हवा की गति (wind speed) कम हो गई है, जिससे ठंडी हवाएं गर्म क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। वहीं, दक्षिण भारत में तेज हवाएं नमी को बेहतर ढंग से फैला रही हैं। यह बड़े पैमाने पर हवा के पैटर्न (wind patterns) में बदलाव का संकेत है, जो मॉनसून प्रणाली (monsoon system) को भी प्रभावित कर सकता है।
जानलेवा बनती गर्मी – मौतों में उछाल
1991 से 2020 तक के आंकड़े बताते हैं कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में अप्रैल-जून के बीच हजारों लोग हीट स्ट्रोक (heat stroke) से मरे। अकेले आंध्र प्रदेश में 2011-2020 के बीच अप्रैल और मई में 3,182 मौतें दर्ज की गईं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी गर्मी से होने वाली मौतें चिंताजनक हैं।
शहरी इलाकों में अलग संकट
शहरों में ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ (urban heat island effect) और स्थानीय माइक्रोक्लाइमेट (microclimate) बदलावों से स्थिति और गंभीर हो रही है। जलवायु शोधकर्ता डॉ. पलक बाल्याण कहते हैं, “हीट स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मौसमी बदलाव अब मानसून के महीनों तक भी हीटवेव को बढ़ा रहे हैं। हमें स्थानीय स्तर पर ठोस योजना (action plan) और स्वास्थ्य प्रतिक्रिया (health response) की आवश्यकता है।”
क्या किया जा सकता है?
जलवायु विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रभावी हीट एक्शन प्लान (heat action plans), मजबूत अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (early warning systems), और शहरों के लिए क्लाइमेट-रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (climate-resilient infrastructure) की जरूरत है। साथ ही, हीटवेव के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए गरीबों, बच्चों, बुजुर्गों और बाहर काम करने वालों के लिए विशेष सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन (climate change) अब भविष्य की समस्या नहीं, बल्कि वर्तमान का संकट है। भारत को अब न केवल गर्मी से लड़ना है, बल्कि अपनी नीतियों, स्वास्थ्य व्यवस्था और बुनियादी ढांचे को नए सिरे से तैयार करना होगा। अन्यथा, प्रत्येक गर्मी पहले से अधिक जानलेवा होगी।