
उन्होंने दावा किया कि विजय माल्या सरीखे कॉर्पोरेट दिग्गजों के कर्ज नहीं चुकाने के कारण देश में बैंकों की कुल गैर-निष्पादित आस्तियां एनपीए बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गयी हैं। एआईबीईए महासचिव ने सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अगले दो साल के भीतर 2.11 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डालने की योजना पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, इन बैंकों को सरकार से मूल धन के रूप में पांच लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। मूल धन की कमी के चलते इन बैंकों को कर्ज बांटने और अपना कारोबार बढ़ाने में खासी मुश्किल हो रही है।
वेंकटाचलम ने देश के सरकारी बैंकों के विलय और निजीकरण के विचार को बेहद घातक बताते हुए कहा कि इन बैंकों की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है और उसे इनका विस्तार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि बैंकिंग सुधारों के नाम पर सरकार के उठाये जा रहे कथित गलत कदमों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने के लिये एआईबीईए अगले महीने से देशव्यापी अभियान चलायेगा।
वेंकटाचलम ने आईडीबीआई बैंक में वेतन वृद्धि की मांग के समर्थन में 27 दिसंबर को बुलायी गयी राष्ट्रव्यापी हड़ताल को एआईबीईए के समर्थन की घोषणा भी की। आईडीबीआई बैंककर्मियों की वेतन वृद्धि एक नवंबर 2012 से लंबित है। उन्होंने आरोप लगाया कि माल और सेवा कर जीएसटी का बैंकिंग उद्योग पर विपरीत असर पड़ रहा है और खासकर छोटे कारोबारी नयी कर प्रणाली के दायरे में आने के डर से बैंकिंग लेन-देन से बच रहे हैं।