
बीबीसी से बात करते हुए अदील ने ऐसे किसी प्रदर्शन में शामिल होने से इनकार करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री एक संवैधानिक पद पर बैठे हैं और वो आलोचना से परे नहीं हैं। हमज़ा ने कहा कि छात्र नेता की हैसियत से छात्रों के मुद्दे उठाने के लिए ज़रूरत पड़ने पर वो मुख्यमंत्री के पुतले फूंकेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें मुस्लिम होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है और यूनिवर्सिटी प्रशासन छात्रों के प्रदर्शन को जबरन धार्मिक रूप देने की कोशिश कर रहा है।
वहीं अपनी कार्रवाई को सही ठहराते हुए प्रफ़ेसर दुबे ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "विश्वविद्यालय में छात्रों का मूल धर्म पढ़ाई है, यहां इसके सिवा किसी अन्य गतिविधि को अनुमति नहीं दी जा सकती है। पुतला दहन या शव यात्रा श्मशान में निकाली जाती है, विश्वविद्यालय में नहीं। इसी विचार से ये कार्य विश्वविद्यालय के धर्म के विरुद्ध है।
जब उनसे कहा गया कि पहले भी कॉलेज परिसरों में नेताओं के पुतले फूंके जाते रहे हैं तो उन्होंने कहा, "मैं अबसे पहले क्या हुआ इसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेता, लेकिन में संस्कृत पृष्ठभूमि से हूं और मेरी नज़र में ये कृत्य अधार्मिक है। जब तक विश्वविद्याल का अनुशासन मेरे जिम्मे हैं मैं ऐसा कोई काम यूनिवर्सिटी में नहीं होने दूंगा।
समाजवादी पार्टी से जुड़े वरिष्ठ छात्र नेता अभिषेक यादव ने बीबीसी से कहा, "यूनिवर्सिटी प्रशासन जबरन माहौल को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहा है। यही नहीं योगी आदित्यनाथ को धर्माचार्य बताकर प्रोफ़ेसर दुबे उन्हें रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ये चाटुकारिता यूनिवर्सिटी का माहौल ख़राब कर सकती है। एबीवीपी से जुड़े छात्र नेता रिंकू पयासी महानंद ने बीबीसी से कहा, "एबीपीवी छात्रों से जुड़े मुद्दे उठाती रही है। इस मामले में यूनिवर्सिटी प्रशासन जबरन धर्म को बीच में ला रहा है। अदील हमज़ा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के उपाध्यक्ष बने पहले मुसलमान छात्र हैं।