मप्र: नर्मदा किनारे ‘पौधारोपण’ के बहाने 700 करोड़ का भ्रष्टाचार

भोपाल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने गत् दिनों संपन्न ‘‘नर्मदा सेवा यात्रा’’ के बाद अपनी स्वयं की ब्रांडिंग करने के उद्देश्य से एक राजनैतिक सनक के रूप में उपजे 02 जुलाई को नर्मदा किनारे होने वाले वृक्षारोपण के नाम पर 700 करोड़ रूपयों से अधिक का भ्रष्टाचार होने का अंदेशा जताया है। उन्होंने कहा कि एक ही दिन में 6 करोड़ पौधे लगाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान यह भी बताएं कि इतने बडे़ खर्च का सहयोजन किस मद से होगा, 6 करोड़ पौधे सरकार ने कहां-कहां से और किस दर पर खरीदे हैं, उनकी सुरक्षा के लिए ट्री-गार्ड लगाये जायेंगे या नहीं और इन पौधों की सुरक्षा की गारंटी के लिए कौन सी एजेंसी अधिकृत की गई है? 

श्री यादव ने मुख्यमंत्री से यह भी पूछा है कि प्रदेश में वन और जंगलों का क्षेत्र आधिकारिक तौर पर कम क्यों हो रहा हैं और जंगल माफियाओं को राजनैतिक संरक्षण कौन दे रहा है? यहीं नहीं नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में नर्मदा के किनारे स्वतः उपजने वाले ‘‘साल’’ वृक्ष, जिसकी जड़ों में वर्षा का जल संरक्षित होकर नर्मदा कुंड में एकत्र होता है, जहां से नर्मदा जल का प्रवाह प्रारंभ होता है, उन्हें भी किसके संरक्षण में काटा जा रहा है? 

कैसे होगा 700 करोड़ का भ्रष्टाचार
श्री यादव ने मुख्यमंत्री से यह भी प्रतिप्रश्न किया है कि जब प्रदेश की कुल आबादी ही अधिकृत तौर पर 7 करोड़ है, तब 6 करोड़ पौधे रोपने का संकल्प कितना विश्वसनीय होगा? भ्रष्टाचार को लेकर अपनी उक्त आशंका को स्पष्ट करते हुए श्री यादव ने कहा कि यदि ईमानदारी पूर्वक (जिसकी कोई संभावना नहीं है) सरकारी आंकड़ों के अनुसार 6 करोड़ पौधों के रोपण हेतु निश्चित तौर पर 6 करोड़ गढ्ढे भी खोदना ही होंगे, जिसकी खुदाई की सरकारी दर कम से कम लगभग 20-25 रूपये प्रति गढ्ढा होगी। इस लिहाज से इन गढ्ढों की खुदाई पर लगभग 150 करोड़ रूपये, इसी प्रकार प्रति वृक्ष की कीमत 15-20 रूपये आंकी जाए तो 90 से 120 करोड़ रूपयों का व्यय होगा। जैसा कि मुख्यमंत्री जी ने कहा है कि एक व्यक्ति से 24 पौधे लगवाये जायेंगे, उनके कथनानुसार इसके लिए लगभग 25 लाख लोगों की जरूरत होगी, इन 25 लाख लोगों के आवागमन हेतु परिवहन, भोजन, प्रचार-प्रसार एवं गढ्ढे खोदने के लिए गेती, फावड़े, तगाड़ी, पौधों में पानी डालने हेतु 25 लाख बाल्टी, पानी के मग व झार इत्यादि पर भी करोड़ों रूपये खर्च किये ही जायेंगे। इन 25 लाख लोगों की मौजूदगी के कारण नर्मदा किनारे वे मल-मूत्र का त्याग करेंगे ही, इससे नर्मदा गंदी-प्रदूषित होगी या स्वच्छ ?  

मनरेगा का पैसा क्यों खर्च कर रहे हो 
श्री यादव ने कहा कि यह बात संज्ञान में आयी है कि इस वृृक्षारोपण के व्यय हेतु मनरेगा के मद से सहयोजन किया जायेगा, यह कहां तक न्याय संगत है, क्योंकि एक ओर प्रदेश में मजदूरों को मनरेगा की धनराशि से उनके वास्तविक हक का भुगतान नहीं हो पा रहा है, वहीं सरकार और कतिपय नौकरशाहों का संगनमत षड्यंत्र इस आर्थिक रूप से जर्जर प्रदेश और मनरेगा के अतिपयोगी बड़ी धनराशि के माध्यम से उसे खोखला करने पर आमादा है। 

निश्चित रूप से राजनैतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम के माध्यम से आर्थिक प्यास बुझाना ही एक निहित उद्देश्य है। बेहतर होगा कि मुख्यमंत्री ऐसी नौटंकियों से प्रदेश की जनता को छलने से बाज आयें और स्पष्ट करें कि मात्र अपनी राजनैतिक और आर्थिक प्यास बुझाने के लिए गरीबों के हित में पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा प्रारंभ की गई महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की आवंटित बड़ी राशि इस कार्यक्रम के माध्यम से किया जाने वाला दुरूपयोग कितना उचित है?

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