
अग्निहोत्र
अग्नि को भगवान का मुख कहा गय़ा है जिसके द्वारा सभी देवता भोजन करते है। जिसघर मॆ अग्निहोत्र होता है वहा भगवान की कृपा होती है। पहले के घरों मॆ चूल्हा होता था रसोई बनने के बाद बने हुए अन्न का पहला हिस्सा अपने कुलदेव इष्टदेव को नमन कर अग्निदेव को जिमाया (खिलाया) जाता था। जिससे सभी देवता आहार पाकर प्रसन्न हो घर पर अपनी कृपा बरसाते थे। आजकल न ऐसी परम्परा है न ऐसा भाव। फलस्वरूप देवकोप होता है। बीमारी कर्ज कलह का घर मॆ निवास होता है। घर मॆ स्वाद तथा पेट्पूजा के लिये बनाया गय़ा भोजन जिसको अग्नि को न जिमाया गया हो उसको राक्षस दैत्य तथा आसुरी शक्तियां खाती है। लगातार ऐसा होने पर रसोईघर मॆ नकारात्मक शक्तियों का वास हो जाता है जो हमे भी अपने जैसा बना देती है इसीलिये घर मॆ बनाये हुए भोजन का अग्निहोत्र अवश्य करें।
आग्नेय कोण
ज्योतिष मॆ शुक्र को आग्नेय कोण का स्वामी माना गय़ा है। शुक्र ग्रह समस्त रस और रसोई का स्वामी माना गया है। रसोई मॆ स्त्री का वास माना जाता है। यह दिशा जितनी शुद्ध और पवित्र होती है घर की स्त्री उतना ही सुखी प्रसन्न और निरोग रहती है। फलस्वरूप घर मॆ प्रसन्नता और बरकत रहती है। आग्नेय कोण मॆ यदि आपकी रसोई है तो निश्चित रूप से आपका खानपान आर्थिक स्थिति और स्त्री का स्वास्थय अच्छा रहेगा। यदि आपका किचन वायव्य, ईशान या नैरत्य कोण हो तो घर की आर्थिक स्थिति तथा ग्रहलक्ष्मी की स्थिति खराब रहती है। वायव्य कोण मॆ किचन होने पर घर मॆ कलह तथा अग्निकांड होने की सम्भावना रहती है। नेरत्य कोण मॆ रसोई घर के सदस्यों का स्वास्थय बिगाड़ देता है। घर की स्त्री को जोडो मॆ दर्द तथा घरेलू व्यापार नौकरी मॆ अचानक रुकावट आती है। ईशान कोण मॆ रसोई घर होने पर घर के वरिष्ठ लोगों का स्वास्थय ठीक नही रहता वे किसी न किसी विवाद से परेशान रहते है। इसीलिये अपने घर का रसोईघर आग्नेय कोण मॆ ही बनाये। जहा अग्नि का स्थान हो वहा पानी का स्थान या सिंक नही होना चाहिये इससे अशुभ परिणाम मिलते है।
*प.चन्द्रशेखरनेमा "हिमांशु"*
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