तो क्या चुनाव आयुक्त पक्षपाती थे...?

भोपाल। राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया में चुनाव आयोग के निर्णय पर सवाल खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग को निष्पक्ष संस्था माना जाता है और समझा जाता है कि वो नियमों का पालन करते हुए समान भाव निर्णय करती है परंतु नेताप्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के डाक मत के मामले में कुछ और ही दृश्य सामने आ रहा है। चुनाव आयोग ने कटारे को डाक मतपत्र की सुविधा देने से इंकार कर दिया था परंतु हाईकोर्ट ने उसके निर्णय को पलटते हुए कटारे को सुविधा प्रदान कर दी। 

न्यायमूर्ति एसके गंगेले की एकलपीठ ने आदेश जारी किए। प्रदेश कांग्रेस ने चुनाव आयोग द्वारा कटारे के लिए डाक मतपत्र का आवेदन खारिज किए जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि कांग्रेस पार्टी के विधायक व नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के कारण मुम्बई में भर्ती हैं। प्रदेश कांग्रेस समिति ने उन्हें डाक मतपत्र जारी करने के लिए आवेदन किया था, जिसे दो जून को मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने खारिज कर दिया। इसके बाद अदालत में दायर याचिका में मांग की गई थी कि धारा 18 (ए) तथा 68 (ए) में दिए गए प्रावधानों के तहत कटारे के लिए डाक मतपत्र जारी किया जाए। हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के निर्णय को रद्द करते हुए कटारे को डाकमत डालने का अधिकार दे दिया। 

चुनाव आयोग इस आयोजन की प्रबंधन संस्था है। नियमों की जानकारी चुनाव आयुक्त को भी होनी चाहिए। फिर प्रश्न यह है कि उन्होंने आवेदन क्यों खारिज किया। अब जबकि हाईकोर्ट ने कटारे को डाक वोटिंग का अधिकार दे दिया तो क्या चुनाव आयुक्त को पक्षपाती मान लिया जाए ? 

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