राकेश दुबे @ प्रतिदिन। विश्व की तमाम सरकारों द्वारा जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए बनाये गये इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने कहा था कि, आनेवाले समय में वर्षा का रूप असंतुलित होता जायेगा|जैसे एक माह तक वर्षा न होने के बाद दो दिन तक भारी वर्षा हो, तो वर्षा सामान्य रहेगी, परंतु खेती के लिए कम ही लाभदायक रहेगी| एकाएक अधिक वर्षा आने से फसल बरबाद होगी इसलिए वर्तमान में वर्षा के स्वरूप से हमें भ्रमित नहीं होना चाहि| वर्षा के इस बदलते रूप का सबसे गहरा प्रभाव भूमिगत जल के पुनर्भरण पर पड़ेगा| वर्षा कई दिन तक धीरे-धीरे हो तो पानी भूमि के अंदर रिस कर भूमिगत तालाबों में जमा हो जाता है, जिन्हें एक्वीफर कहते हैं|
एक झटके में आनेवाली तीव्र वर्षा बाढ़ लाती है और खेती को नुकसान पहुंचाती है| विशेष यह कि अधिकतर पानी नदियों के रास्ते समुद्र को चला जाता है और हम उसके उपयोग से वंचित रह जाते हैं| फलस्वरूप पूरे देश में भूमिगत जलस्तर तेजी से घट रहा है| समस्या और विकराल होती जा रही है| चूंकि सरकार द्वारा भूमिगत जल को निकालने के लिए सब्सिडी दी जा रही है. अनेक राज्यों में किसानों को बिजली मुफ्त अथवा सस्ते मूल्य पर दी जा रही है| ऐसे में किसानों की प्रवृत्ति बनती है कि वे जल का अधिकाधिक उपयोग करें| नहर के पानी की भी बरबादी हो रही है, किसान से पानी का मूल्य फसल के आधार पर वसूला जाता है|
गेहूं के खेत में नहर के पानी से एक बार सिंचाई की जाये या पांच बार किसान को उतना ही मूल्य देना होता है| ऐसे में किसान की प्रवृत्ति बनती है कि तब तक सिंचाई करता रहे, जब तक नहर में पानी है| इस प्रकार देश के सामने दोहरा संकट उत्पन्न हो गया है| एक तरफ वर्षा के पैटर्न में बदलाव से भूमिगत जल का पुनर्भरण कम हो रहा है. दूसरी तरफ भूमिगत जल का अतिदोहन हो रहा है| इस समस्या का समाधान है कि किसान द्वारा उपयोग किये गये पानी की मात्र के अनुसार मूल्य वसूल किया जाये| गेहूं के खेत की जितनी बार नहर से सिंचाई की जाये, उसी के अनुसार पानी का मूल्य वसूला जाये|
तब पानी खोलने के पहले किसान विचार करेगा कि पानी देने की जरूरत है या नहीं| दूसरा समाधान है कि किसान को दी जा रही बिजली का पूरा मूल्य वसूला जाये| तब बोरवेल चलाने के पहले किसान विचार करेगा कि बिजली के मूल्य के सामने फसल को कितना लाभ होगा| तब पानी के दुरुपयोग पर सरकार का नियंत्रण होगा|
समस्या है कि किसान पहले ही घाटे में चल रहा है. पानी के मूल्य का बोझ डालने से उसकी हालत और बिगड़ जायेगी. समाधान है कि कृषि उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि की जाये|पानी का खर्च यदि१०० रुपये प्रति क्विंटल बढ़ता है, तो फसल के दाम में 150 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की जाये| तब किसान को पानी का मूल्य अदा करने में परेशानी नहीं होगी|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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