बेटे की चाहत में 15 बेटियां पैदा कर लीं

वडोदरा। दाहोद जिले के गर्भादा ताल्लुका में स्थित झरीबुझी गांव में रहने वाले एक जनजातीय दंपती के यहां जब 16वीं संतान पैदा होने वाली थी तब पति-पत्नी दोनों चाहते थे कि पैदा होने वाला बच्चा बेटा हो, लेकिन उनके यहां 15वीं बेटी पैदा हुई। 15 बेटियों और एक बेटे वाले इस पिता ने अभी भी उम्मीद नहीं हारी है। दंपती को साल 2013 में एक बेटा हुआ था।

परिवार के मुखिया रामसिंह एक छोटे किसान हैं। वह अभी भी एक बेटे के लिए कोशिश करना चाहते हैं, लेकिन उनकी पत्नी कानू संगोड अब उकता गई हैं और वह ऑपरेशन कराना चाहती हैं।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के हवाले से कानू कहती हैं, 'मैंने अपने पति से कहा कि हमें ईश्वर की इच्छा समझकर इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। ईश्वर चाहता है कि हमारे बस एक ही बेटा हो। हमें अब एक और बेटे की अपनी कोशिशों को खत्म कर देना चाहिए। मैं अब बच्चा नहीं चाहती। मैं अब ऑपरेशन करा लेना चाहती हूं। मेरा शरीर कमजोर हो गया है और अब मुझमें इतनी ताकत नहीं है कि मैं एक और बार गर्भधारण कर सकूं।'

उधर, रामसिंह का कहना है एक बेटी के पैदा होने के बाद तो बेटे के लिए कोशिश करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा, 'हमारे समाज में महिला के भाई को अपनी बहन की शादी पर उसके लिए तोहफे, शादी का सामान और बाद में भी अपनी बहन की ससुराल और उसके बच्चों के लिए तोहफे देने पड़ते हैं। मेरा बेटा अपनी बहनों से छोटा है। सिर्फ एक ही बहन उससे छोटी है। मेरे बेटे के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा कि वह अपनी सभी बहनों के साथ लेन-देन की रस्म निभा सके। यही कारण है कि मैं चाहता हूं कि उसका एक और भाई हो ताकि दोनों भाई मिलकर जिम्मेदारी पूरी कर सकें। अगर ईश्वर ने हमें एक और बेटी दी है तो वह हमें एक और बेटा भी दे सकता है।'

रामसिंह और कानू की सबसे छोटी बेटी का जन्म बीते 2 अगस्त को हुआ। कानू कहती हैं, 'मैंने अभी तक उसके लिए नाम नहीं सोचा है। मैं चाहती हूं कि पहले मेरे पति हमारे भविष्य के बारे में कोई फैसला करें। अगर वह मुझे बच्चा रोकने के लिए ऑपरेशन कराने देंगे तो बहुत अच्छा रहेगा। हमारे पास वैसे भी गुजारे के लिए बहुत कम है और मेरा शरीर भी एक और गर्भधारण के लिए तैयार नहीं है। भूखे मरने की नौबत में बच्चा कैसे पैदा कर सकूंगी। मैं मानती हूं कि एक बेटे के लिए अपनी सभी बहनों की जिम्मेदारी उठा पाना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन मेरा दिल और दिमाग एक साथ नहीं हैं।'

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