आदेश ना देते तो कुर्सी चली जाती

भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने व्यापमं घोटाले में सीबीआई जांच की मांग मान ही ली, लेकिन इतनी देर से क्यों मानी और रातों रात मूड कैसे बदल गया, इस पर आज चर्चा हो रही है। शिवराज ने आज जारी बयान में कहा कि वो 'रात भर सो नहीं सके।' चर्चा यह भी है कि ऐसा क्या हुआ जो शिवराज की नींद उड़ गई।

मध्यप्रदेश भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहीं से वित्त पोषित होकर आरएसएस देश का सबसे बड़ा संगठन बना है। व्यापमं मामले को लेकर भाजपा की जबर्दस्त भद पिट रही थी। संघ का एक तरीका है। वो उस समय कोई कार्रवाई नहीं करता, जब मामला गर्म हो। संघ ठंडा करके खाने में भरोसा करता है। व्यापमं मामले के बाद शिवराज की विदाई तय हो गई थी। संघ मामले के शांत होने की प्रतीक्षा कर रहा था।

कानाफूसी हो रही है कि शिवराज को भी यह पता था, इसलिए जब जब मामला शांत होता, शिवराज के इशारे पर फिर से गर्मा दिया जाता। दूसरा इशारा होते ही होहल्ला बंद हो जाता। सबकुछ रिमोर्ट से कंट्रोल हो रहा था।

झाबुआ में पत्रकार अक्षय सिंह की मौत के बाद मामला अनकंट्रोल्ड हो गया। सीधे नेशनल मीडिया का इश्यू बन गया। तीखे सवाल और तकनीकी रिपोर्टिंग शुरू हो गई। दुनिया भर की मीडिया इसे कवर कर रही है। भाजपा हाईकमान और नागपुर दोनों प्रेशर में थे। बार बार सीबीआई जांच की मांग उठ रही थी जिसे लगातार खारिज किया जा रहा था।

बीती शाम शिवराज के सामने दो विकल्प पेश किए गए। या तो सीबीआई जांच की पहल करें या फिर कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार रहें। यही कारण है कि कल रात तक जिस कदम को शिवराज सिंह चौहान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बता रहे थे, सुबह होते ही उन्होंने वही कदम उठा लिया।

इससे एक फायदा हो गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को समय मिल गया। यदि सीबीआई जांच की मांग ना मानते तो मानसून सत्र के बाद शिवराज का कार्यकाल समाप्त हो सकता था। 'जो होगा, सो भुगत लूंगा' यह बयान तो शिवराज पहले ही दे चुके हैं। अब देखना यह है कि कब सीबीआई जांच शुरू होती है और कैसे कैसे चलती है।

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