भोपाल। मप्र में पंचायत चुनाव चल रहे हैं और नगरनिगम के चुनाव भी। पहले की तरह इस बार भी मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग कंफ्यूज है। उसे मैदान में मौजूद कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं है। अब तक होता आया है ऐसे कंफ्यूज वोटर्स वोटिंग ही नहीं करते, लेकिन पहली बार देखने में आ रहा है कि लोगों के बीच नोटा की बातचीत हो रही है। लोग एक दूसरे से आग्रह कर रहे हैं कि चाहे नोटा करें लेकिन वोट जरूर करें, ताकि लोकतंत्र का सही स्वरूप सामने आ सके।
ये NOTA क्या है
चुनाव के दौरान ईवीएम का आखरी बटन NOTA होता है। सरल शब्दों में कहें तो यह राइट टू रिजेक्ट है। जब मैदान में मौजूद कोई भी प्रत्याशी अच्छा ना लगे तो NOTA दबाकर नाराजगी प्रकट करें।
फायदा क्या होगा इससे
लोगों में भ्रम है कि जीत तो किसी एक की ही होगी। जिसे ज्यादा वोट मिलेंगे। NOTA को वोट करने का क्या फायदा। बहुत कम लोग जानते हैं कि यदि किसी सीट पर NOTA जीत गया तो चुनाव निरस्त हो जाएगा। दोबारा चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी। इस तरह राजनैतिक दलों को भी एक संदेश चला जाएगा कि किसी व्यक्ति को केवल इसलिए टिकिट नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि वो किसी बड़े नेता का खास चमचा है, बल्कि इसलिए दिया जाना चाहिए क्योंकि वह आमजन के लिए हितकर है, जनता में लोकप्रिय है। बेदाग छवि वाला है।
तो फिर चुनाव आयोग जागरुकता अभियान क्यों नहीं चलाता
यह बड़ा सवाल है। चुनाव आयोग वोट देने की अपील तो करता है परंतु NOTA के बारे मेें आम लोगों को ऐसे किसी अभियान की तरह आज तक नहीं समझाया गया। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि चुनाव आयोग के संबंधित अधिकारी फिलहाल NOTA का झटका सहन करने की मानसिकता में नहीं है। कानून बना दिया गया है सो पालन किया जा रहा है परंतु इसका प्रचार नहीं किया जा रहा। वैसे भी चुनाव आयोग के आधे से ज्यादा काम उधार के अधिकारी करते हैं, ऐसे में वो अपने विभाग को छोड़कर चुनावी चक्करों में फंसना नहीं चाहते।