राकेश दुबे@प्रतिदिन। केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के बयान पर बवाल मचा हुआ है. भाजपा की उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीट से लोकसभा सांसद साध्वी निरंजन ज्योति ने रविवार को दिल्ली में आयोजित एक रैली में कहा था कि आपको तय करना है कि दिल्ली में सरकार ‘रामजादों की बनेगी या ***जादों की !”
आज संसद के दोनों सदनों में इस मामले को लेकर भारी हंगामा हुआ. विपक्षी पार्टियों ने बयान को तुरंत वापस लिए जाने की मांग की और प्रधानमंत्री के निर्देश पर निरंजन ज्योति ने दोनों सदनों में माफ़ी भी मांगी | केन्द्रीय मंत्री के पद पर रहते हुए ऐसा बयान देने की वजह से कांग्रेस साध्वी निरंजन ज्योति के इस्तीफे पर अड़ी हुई हैं|
किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाय तो ऐसा बयान उचित नहीं कहा जा सकता | लेकिन प्रश्न ये भी उठता है कि नेता ऐसे बयान क्यों देते हैं! दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से इस देश की राजनीति में विवाद पैदा करना न सिर्फ प्रचार का अच्छा जरिया बन चुका है बल्कि इसके साथ ही कुछ लोग ये समझने लगे हैं कि ऐसा बयान देने से जनता उनके और उनकी पार्टी के पक्ष में आएगी| इसी वजह से ये लोग कई बार विरोधी विचारधारा के लोगों पर व्यक्तिगत आरोप लगाने से भी नहीं चूकते| इसके अलावा सत्ता का मद भी एक ऐसी चीज है, जिसको अपने काबू में करना इनके बस में नहीं रह पाता| शायद इसी वजह से साध्वी निरंजन ज्योति जैसे लोग इस तरह का बयान गाहे-बगाहे दे डालते हैं|
देश की राजनीति गवाह है कि किस तरह से ऐसे विवादास्पद बयानों के दम पर चाहे कांग्रेस के दिग्विजय सिंह से लेकर कपिल सिब्बल, बेनी प्रसाद वर्मा, शशि थरूर और रेणुका चौधरी जैसे नेता हों या फिर बीजेपी के गिरिराज सिंह, योगी आदित्यनाथ, उमा भारती और ताजा कड़ी में साध्वी निरंजन ज्योति जैसे लोग हो, हर कोई अपने-अपने तरीके से विवादास्पद बयानों की वजह से चर्चा में रहा है और इसका सीधा मकसद व्यक्तिगत लाभ और उसके जरिये पार्टी के वोट बैंक को गोलबंद करना रहा है |यानि, कुल मिलकर देखा जाये तो अमर्यादित बयानों के इस हमाम में हर पार्टी के लोग खड़े मिलेंगे |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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