भोपाल। यहां पहले चुनाव 1952-57 तक इस सीट से अखिल भारतीय हिंदू महासभा के नारायण भास्कर खरे ने संसद में प्रतिनिधित्व किया, लेकिन यह दौर भी सिंधिया रियासत के तत्कालीन मुखिया जीवाजीराव सिंधिया (राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पति) का हिंदुत्व के प्रति झुकाव के असर का दौर था। इसके बाद 1957-62 तक यहां कांग्रेस का कब्जा रहा।
इस सीट से दो प्रतिनिधि सूरज प्रसाद (सु.) और राधाचरण शर्मा (सामान्य) निर्वाचित हुए। इसके बाद सिंधिया परिवार के प्रतिनिधि के तौर पर विजयाराजे सिंधिया का सीधे राजनीति में प्रवेश हुआ। 1962-67 तक वे यहां से जनसंघ की सांसद रहीं। यह सिलसिला अटलबिहारी वाजपेयी तक चला। इसके बाद जनता पार्टी का दौर आया तो नारायण कृष्ण शेजवलकर (1977-80) जीते। वे 1980-84 में भाजपा के टिकट पर जीते।
चौदह वर्ष तक एक ही चेहरे का राज :1984 के चुनाव से इस सीट पर कांग्रेस ने किसी विपक्षी दल के उम्मीदवार को जीत नसीब नहीं होने दी। कारण, 1999 तक (पूरे चौदह साल) इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर माधवराव सिंधिया ने चुनाव लड़ा और जीता। इस अवधि में एक बार वे कांग्रेस से बाहर होकर विकास कांग्रेस के बैनर पर भी चुनाव लड़े।
उनके मुकाबले कांग्रेस के उम्मीदवार शशिभूषण वाजपेयी की जमानत जब्त हुई तो भाजपा ने अपने घोषित उम्मीदवार माधव शंकर इंदापुरकर को मैदान से ही हटा लिया। यहां महल से हटकर भाजपा के जयभान सिंह पवैया 1999-2004 में चुनाव जीते तो कांग्रेस के रामसेवक सिंह गुर्जर 2004-07 में विजयी हुए। इसके बाद हुए उपचुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया (2007-09) जीतकर संसद में पहुंची।