खैराती योजनाओं से बन रहा है निकम्मा मध्यप्रदेश, खजाना भी हो रहा है खाली

उपदेश अवस्थी/भोपाल। सत्तालोलुप राजनीतिक दलों ने गरीबों को अपना वोट बैंक बना लिया है और उन्हें साधने या अपने पक्ष में करने के लिए सियासी पार्टियों में होड़ सी मची है। गरीबों को वश में करने वाली खैराती योजनाएं सत्ता की चाबी बन गई है। सस्ता या मुफ्त अनाज, ब्रह्मास्त्र बन गया है। ऐसी लोकलुभावन योजनाओं अर्थात् खैराती योजनाओं से बड़ी बुराई के रूप में निठल्लापन पनप रहा है।

गद्दी हासिल करने का नुस्खा

खैराती योजनाओं से लाभान्वित लोगों में मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति पनप रही है। लोग श्रम करने से कतरा रहे हैं। लोग कामचोर एवं निकम्मे होते जा रहे हैं। ऐसी खैराती योजनाओं से खजाना खाली हो रहा है अथवा उस पर कर्ज भार बढ़ रहा है। सरकारें लोगों को कर्मठ एवं स्वाभिमानी बनाने की बजाय मुफ्तखोर या आलसी बनाकर कमजोर कर रही हैं।

श्रम से मिल धन एवं अन्न का महत्व होता है किन्तु मुफ्त में मिले धन एवं अन्न से व्यक्ति बरबाद होता है। यही पार्टियों एवं सरकारों की खैराती योजनाओं से हो रहा है। काम के बदले अनाज योजना में काम अर्थात् श्रम को महत्व मिला था। यह सरकार की सही योजना थी किन्तु मनरेगा के तहत सौ दिन रोजगार के नाम पर जो धन मिल रहा है, उससे जनता निकम्मी बन रही है। मप्र, छग, पंजाब, उप्र, कर्नाटक, तमिलनाड़ु आदि में खैराती योजनाओं का ख्वाब दिखाकर सत्ता तक पहुंची राजनीतिक पार्टियों ने सरकार बनाकर अपने राज्य का खजाना इन योजनाओं को लागू करने के लिए खोल दिया है। इस हेतु खजाने की खाली किया जा रहा है या उसे कर्ज के भार से डुबोया जा रहा है।

खैराती योजनाओं के तहत लोगों को कंबल, साड़ी, धोती, टेबलेट, लैपटाप, कलर टीवी, पंखा, मिक्सर ग्राइंडर, मंगलसूत्र, साइकिल, सिलाई मशीन, मुफ्त छात्रवृत्ति, पढ़ाई खर्च, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त कापी किताब, बैग, सस्ते में या मुफ्त में अनाज दिया जा रहा है। मप्र, छग, पंजाब, उप्र, तमिलनाडु एवं कर्नाटक आदि में ऐसी खैराती योजनाओं की भरमार है जिनसे जनता को लाभान्वित किया जा रहा है।

उप्र में ऐसी योजनाओं के चलते समाजवादी, पार्टी के अखिलेश यादव को सत्ता मिली। मप्र एवं छग में ऐसी खैराती योजनाओं की बदौलत भाजपा की हैट्रिक बनी एवं क्रमश: शिवराज सिंह चौहान एवं डा. रमन सिंह तीसरी मर्तबा मुख्यमंत्री बने। पंजाब में ऐसी योजनाओं के चलते शिरोमणि अकाली दल एवं भाजपा को लगातार दूसरी बार जीत मिली और प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री बने।

महंगाई बढ़ना स्वाभाविक

तमिलनाडु में ए.आई.डी.एम. के पार्टी की जयललिता ऐसी खैराती योजनाओं के माध्यम से जीतकर सत्ता तक वापस पहुंची। कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता में वापसी एवं सिध्दारमैया को मुख्यमंत्री पद मिलने के पीछे यही कारण रहा। दिल्ली राज्य में नवोदित आप पार्टी ने समस्या को उभारकर सस्ते बिजली, पानी का प्रलोभन दिया। खैराती योजनाओं का ख्वाब दिखाया इसलिए उसे बड़ी सफलता मिली।

आज कई राज्यों में खैराती योजनाएं सत्ता की चाबी बनी हैं। राजनीति के ऐसे मुफ्त उपहारों से जनता में मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति पनप रही है। वह रोजगार एवं श्रम करके कुछ पाने के महत्व को नकार कर निठल्ला बन रही है।

आंध्र प्रदेश में 80 के दशक में सस्ते चावल के मुद्दे ने क्रांति पैदा कर दी थी। तेलुगु गौरव के नाम पर एन.टी. रामाराव द्वारा प्रस्तुत एक रुपये में चावल की योजना ने तीन दशक से ऊपर की कांग्रेस सरकार का सत्ता से उखाड़ फेंक दिया था। इसकी बदौलत आंध्र प्रदेश में एन.टी. रामाराव की तेलुगुदेशम सरकार बनी थी जिससे फिल्म से राजनीति में उतरने वाले रामाराव को देशव्यापी बहुत ख्याति मिली थी।

सस्ते चावल के कारण ही ओडिशा में बीजद एवं नवीन पटनायक जम गए। मप्र एवं छग में शिवराज व रमन ने हैट्रिक बना ली। पंजाब में बादल की चल गई। कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता में वापसी के पीछे भी खैराती योजना रही। अब बंगाल एवं बिहार में यही हो रहा है। सस्ते अनाज से गरीबों के वोट बैंक को पक्का किया जा रहा है।

आंध्र प्रदेश के बाद तमिलनाडु, मप्र, छग, पंजाब, ओडिशा, कर्नाटक आदि राज्यों में सस्ते अनाज को अपनाया गया। इससे गरीब वर्ग को बड़ी राहत मिली। गरीबों को अपना वोट बैंक बनाने के लिए सस्ती रोटी, कपड़ा, और मकान को लक्ष्य बनाया गया किन्तु किसी भी राजनीतिक दल ने इसके अनुचित प्रभाव को नहीं देखा इससे बाजार में महंगाई का बढ़ना स्वाभाविक था। ऐसी लोकलुभावन योजनाओं से समाज में निठल्लापन पनपा। सरकारी खजाने पर खर्च एवं बोझ बढ़ा। राजनीतिक दल पेट के रास्ते में वोट तक पहुंच गए और जनता पेट भर जाने से मेहनत-मजदूरी से कतराने लगी। इन राज्यों के गावों में अब खोजने पर श्रमिक नहीं मिलते। वे श्रम करने से कतराने लगे हैं। जीवन स्तर को अपग्रेड करना नहीं चाहते। बचत में उनका विश्वास नहीं है।

लोगों में स्वावलंबन की भावना जागने एवं आत्मविश्वास बढ़ने की अपेक्षा आलस एवं ढलहापन बढ़ रहा है। देश में श्रमशीलता का ह्रास हो रहा है। निठल्ले एवं मुफ्तखोर बढ़े हैं। लोग मेहनत से जी चुराने लगे हैं। बैठ कर खाने की आदत पड़ रही है। परिश्रम कर कमाना छोड़ रहे हैं। राजनीतिक दलों को वोट बैंक की चिंता है। कोई जनता के इस पतन को नहीं देख रहा है। खैराती योजनाओं की बदौलत राजनीति की खटास गाड़ी धड़ल्ले से चल रही है।

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