भोपाल। म0प्र0 की भाजपा सरकार प्राय: अपनी पीठ थपथपाती है कि उसके शासनकाल में ओवरड्राफ्ट की स्थिति निर्मित नहीं हुई जबकि सच्चाई रोंगटे खड़ा कर देने वाला है। प्रदेश में गुरुजी, संविदा शिक्षक, अध्यापक और अतिथि अध्यापकों की कुल संख्या प्रदेश के कुल कर्मचारियों की संख्या की लगभग आधी है। ये वो कर्मचारी हैं, जिन्हें कभी भी नियमित रूप से वेतन नहीं मिलता।
इनका वेतन प्रत्येक पाँच-छह या उससे अधिक माह बीत जाने के बाद दिया जाता है। एक ही जिले में भी बजट आबंटन में भारी विसंगति है। बजट वितरण इस प्रकार किया जाता है कि कुछ अध्यापकों का इस टर्म में, तो बाकी अध्यापकों का अगले टर्म में वेतन मिले। इस प्रकार सरकार अध्यापकों का वेतन कम से कम चार-पाँच माह विलम्ब से देती है ।ओवरड्राफ्ट न होने की कीमत यह संवर्ग भुगत रहा है और श्रेय सरकार ले रही है ।यदि सरकार सचमुच ओवरड्राफ्ट न होने का दम भरती है तो अतिथि अध्यापक , गुरूजी , संविदा और अध्यापकों का वेतन शून्य बजट पर निकालकर दिखाए ।वास्तविकता खुद ब खुद सामने आ जाएगी ।
अनियमित वेतन के ये हैं कारण
अधिकाँश संकुलों में प्राचार्य पद तो अध्यापक संवर्ग सँभाल रहा है परन्तु डीडीओ का प्रभार किसी अन्य स्कूल का सरकारी प्राचार्य सँभालता है, जो स्वाभाविक रूप से इस संवर्ग के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार करता है ।इस कार्य के प्रति उनकी कोई रुचि नहीं होती ।समय पर , और समुचित माँग पत्र नहीं भेजे जाते ।समय पर बजट लेने नहीं जाते और यथासमय बिल नहीं लगाए जाते ।
वरिष्ठ कार्यालयों की है मिलीभगत
वेतन विसंगति की इस लापरवाही में मंत्रालय स्तर तक की मिलीभगत है क्योंकि अन्तत: बजट उन्हीं को देना होता है ।यदि ऐसा नहीं है तो संचार माध्यमों से जानकारी प्राप्त होने के बावजूद लापरवाह अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं की जाती ?
अनूपपुर जिले में भी पिछले मार्च माह तक अधिकाँश अध्यापकों का वेतन पाँच से छह माह का बाकी था ।मार्च माह में कुछेक महीनों का वेतन भुगतान करने के बावजूद अब भी दो से तीन माह का वेतन बाकी है ।जिसके मिलने की संभावना के बारे में अधिकारीगण मौन हैं ।
हाथ पसारने के लिए बेवश है अध्यापक वर्ग
अब तो अध्यापकों की हाथ पसारने की आदत सी पड़ गई है ।कभी समाज को तन , मन , धन से सेवा करने वाला यह वर्ग तन , मन और धन का भिखारी हो गया है ।शारीरिक रूप से रुग्ण , मानसिक रूप से विक्षिप्त और आर्थिक रूप से निर्बल यह वर्ग किल्लत और जिल्लत की जिन्दगी जीने के लिए विवश है ।
शिवराज सिंह चौहान ने दिलासे दे देकर मारा
माननीय मुख्यमंत्री महोदय दर्शन शास्त्र के विद्यार्थी रहे हैं ।जब भी वे बोलते हैं , दिल से बोलते हैं , ऐसा लगता है ।मगर उन्होंने अपने दार्शनिक ज्ञान का सर्वाधिक उपयोग इस संवर्ग को कुंठित करने में किया । इस संवर्ग के लिए वैसा कुछ नहीं किया जिससे कि अध्यापक वर्ग निश्चिन्त होकर अपनी ऊर्जा का उपयोग सिर्फ विद्यार्थियों को पढ़ाने में करता । न अपेक्षित वेतनवृद्धि हुई , न ही अध्यापक हित में व्यवस्था में अपेक्षित परिवर्तन हुआ । बल्कि छोटा भाई कहकर साबित कर दिया कि जब बड़े भाई की गृहस्थी बन- सँवर जाती है तो बड़ा भाई , छोटे भाई को उसी के हाल में छोड़ देता है।