समौसे बेच रही है मध्यप्रदेश की शान, जिसे सरकार ने दिया था सम्मान

भोपाल। मध्यप्रदेश का सर्वोच्च खेल सम्मान यानी विक्रम अवार्ड से नवाजा गया एक बॉक्सर आज समोसे बेच कर अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर है. प्रशासनिक अनदेखी और लापरवाही किसी चैंपियन को दो वक्त की रोटी के लिए किस कदर मोहताज कर देती है, इसकी बानगी हैं जबलपुर के राजकरन सोनकर।

42 साल के राजकरन ने बॉक्सिंग में ढेरों तमगे हासिल किए हैं. 1990 से बॉक्सिंग में अपने करियर की शुरु आत करने के बाद राजकरन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1994 में गुवाहाटी में आयोजित राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता. इसे साल नई दिल्ली वाईएमसीए में आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल हासिल किया. फिर 1996 में कोलकाता के राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल जीता. बॉक्सिंग की दुनिया में अपना लोहा मनवाने के बाद 1998 में मध्यप्रदेश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार यानी विक्रम अवार्ड भी हासिल किया. लेकिन हर तस्वीर का दूसरा पहलू भी होता है.

राजकरन की जिंदगी का दूसरा पहलू बेहद दर्दनाक और शर्म से सिर झुका देने वाला है. हमारे शासन-प्रशासन के दावों की कलई खोलने वाली यह कहानी ऐसे शख्स की है, जिसके पंच ने प्रदेश की झोली में सोने,चांदी, और कांस्य पदकों की बरसात की, वही विक्रम अवार्ड विजेता राजकरन जबलपुर के रसल चौक पर छोटी सी दुकान में समोसे बनाता-बेचता रहा है. यह एक ऐसा सच है जो प्रदेश में खिलाड़ियों की हालात का आइना दिखाता है. सम्मान से पेट नहीं भरता..अवार्ड और मेडल परिवार नहीं चला सकते. सो दो वक्त की रोटी के लिए यह काम करना पड़ रहा है.

हालांकि राजकरन को फक्र है अपने कामयाब बॉक्सिंग करियर पर, लेकिन अफसोस है  शासन-प्रशासन की बेरु खी का. विक्रम अवार्ड देते समय नौकरी दिए जाने का सुनहरा सपना भी दिखाया गया लेकिन सच्चाई सबके सामने है. सिस्टम की बेरु खी ने राजकरन को खामोश कर दिया है. मानसिक रूप से परेशान भी दिखते हैं पर किसी से ज्यादा बातें नहीं करते. बस अपना काम करते हैं ताकि पत्नी और दो स्कूली बच्चों वाले अपने परिवार का पेट भर सकें. वैसे वक्त के थपेड़ों ने राजकरन के बॉक्सिंग प्रेम को कम नहीं किया है. वह आज भी प्रैक्टिस करते हैं, शायद खुद को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए. साथ ही अब उनका लगाव वेटलिफ्टिंग के प्रति भी बढ़ गया है.

सवाल ये है कि प्रदेश का सबसे बड़ा खेल सम्मान हासिल कर चुके खिलाड़ी की ऐसी दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है..आखिर राजकरन को उसका हक क्यों नहीं मिला..उसने अपने जीवन के सबसे अहम साल बॉक्सिंग को दे दिए..फिर उसे सरकार से एक अदद नौकरी क्यों नहीं दी गई.. इन सारे सवालों का जबाव कौन देगा...

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!