सुबोध आचार्य/ मप्र के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में एक कार्यक्रम में महिलाओं को मर्यादा का पाठ क्या याद दिला दिया, बयानवीरों के बयानों की बाढ़ आ गई। चूंकि, उन्होंने सीता माता का उदाहरण दिया, इसलिए यह बवाल मच गया। लक्ष्मण रेखा लांघने का उदाहरण दिया। उस प्रकरण में अपहरण ही हुआ था। हम सभी जानते हैं कि आर्थिक उदारीकरण तथा आधुनिकता की आड़ में सामाजिक मान्यताएं तार-तार हो चुकी हैं। सामाजिक परंपराओं में जो गिरावट आई है, वह सभी के लिए चिंताजनक है।
महिलाओं तथा युवतियों ने आधुनिकता ओढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगाई। महानगरों की अंधी दौड़ गांव-गांव तक बहुत तेजी से फैली जिसका परिणाम हम सबके सामने भयावह रूप लेकर खड़ा है, इसके पहले भी ऐसे कई कांड इस देश में हो चुके हैं, लेकिन उस समय यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं था। अब बाल की खाल, खाल की खाल निकालने के लिए यह मौजूद है। जो नमक मिर्च लगाकर आम आदमी की सोच पर अपना प्रभाव छोड़ रहा है। हर बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की होड़ में जनता बहे जा रही है। चैनलों पर बलात्कार की खबरों की बाढ़ सी आ गई है। पिछले साल से प्रारंभ हुई ये खबरें नए साल में भी जारी है।
क्षेत्रीय चैनल भी इसका भरपूर लाभ उठाने की फिराक में है। मर्यादाओं का उल्लंघन हर तरफ से हो रहा है। केवल महिलाएं इसके लिए लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन कुछ हद तक जिम्मेदारी से बच भी नहीं सकती। आधुनिक शिक्षा तथा बराबरी का दर्जा एवं मिली हुई स्वतंत्रता को संभाल पाना इतना आसान नहीं है। ऐसे कई कृत्य इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं लेकिन उनके नाम से कानून नहीं बनें, कानून केवल धाराओं की व्याख्या के रूप में जाना जाता है, ना ही व्यक्ति विशेष के नाम से।
बिहार में आंख फोडवा कांड हुआ, क्या कानून किसी के नाम से बना? दिल्ली में तंदूर कांड हुआ, क्या तंदूर के नाम से कानून बना? यह एक लंबी बहस का मुद्दा है, जो कभी समाप्त नहीं होगा। चूंकि देश की राजधानी में यह कांड हुआ तथा केंद्र सरकार की आंखों के सामने हुआ, इसलिए आज देश शर्मसार हुआ, लेकिन हम अपने आप में झांककर देखें कि हम कितने दिनों या वर्षों तक शर्मिंदा रहेंगे? आज भी देश में बलात्कार के कितने प्रकरण बिना फैसलों के अदालत में पड़े हैं, लेकिन तारीखों का सिलसिला अभी भी जारी है।