वह फसलें स्वास्थ्यवर्धक कैसे हो सकती हैं जिनमें कीटनाशक मिला होता है | GK IN HINDI

Bhopal Samachar
कोरोना वायरस के कहर के बाद सारी दुनिया ने मान लिया है कि शाकाहार स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है परंतु बड़ा सवाल यह है कि जिन फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए तकनीकी तरीकों से जहरीला कर दिया जाता है वह फसलें इंसान के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक कैसे हो सकती हैं। आइए एक्सपर्ट की स्टडी रिपोर्ट का सारांश पढ़ते हैं: 

क्या पौधों के अंदर प्राकृतिक रूप से कीटनाशक होता है

क्या आप जानते हैं इंसान शुरु से ही ऐसे पौधे खाता आ रहा है, जो कीटों के लिए जहरीले साबित होते हैं। क्योंकि पौधे कीटों से दूर नहीं भाग सकते हैं, इसलिए कई पौधे स्वतः कीटनाशक बनाने की काबिलियत के साथ विकसित हुए हैं।

कैफीन: फसल के लिए कीटनाशक है या इंसान के लिए औषधि

आप शायद इन शक्तिशाली कीटनाशकों में से एक का सेवन करते भी हैं। इस रसायन का नाम है 1,3,7-ट्राईमिथाइललेक्सनथाइन, जिसे आप "कैफीन के नाम से जानते होंगे।" कीटों के लिए यह एक ताकतवर न्यूरोटॉक्सिन है। इंसानों के लिए, जोकि कीड़े-मकोड़ों से काफी अलग हैं, यह एक उत्तेजक औषधि है। 

कैफीन खाने से कीड़े मर जाते हैं तो फिर मनुष्य क्यों नहीं मरते

हम (मनुष्य) आकार में कीटों से कहीं गुना बड़े हैं। एक खुराक जो किसी कीट की जान ले सकती है, उसका हमें अहसास भी नहीं होता लेकिन यदि मनुष्य में कैफीन को अत्याधिक मात्रा में सेवन करें बटॉक्स इस पदार्थ इंसान के लिए भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। दूसरी चीज जैविक बनावट है। कुछ फल और सब्जियां बीटी (Bt- बैसिलस थुरियनजीनिसस) नामक प्राकृतिक कीटनाशक को बनाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों से डिजाइन की जाती हैं।

कीटनाशक खाने पर मनुष्य के शरीर में क्या असर होता है

कीटों और मनुष्यों में सबसे बड़ा अंतर ये है कि हमारे पेट में एसिड बनता है, जबकि कीटों में ऐसा नहीं होता, उनके पेट में पाया जाने वाला पाचन रस क्षारीय होता है। जब बीटी पेट के एसिड में घुलता है तो यह टूट जाता है और पचा लिया जाता है। यानी वह मनुष्य को नुकसान नहीं पहुंचा पाता लेकिन जब बीटी क्षारीय विलयन में घुलता है, तो इसमें क्रिस्टल बन जाते हैं। ये क्रिस्टल छोटे होते हैं, लेकिन कीटों के पेट भी तो छोटे होते हैं। कीटों के पेट में क्रिस्टल भर जाते हैं और उसे फाड़ देते हैं। इस तरह वे कीटों को मार डालते हैं। यही कारण है कि बीटी इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाता। दरअसल इसका इस्तेमाल ऑर्गेनिक फल-सब्जियां उगाने में काफी समय से हो रहा है। 

विशेष नोट: यह लेख Franklin Veaux, Professional Writer जो पोर्टलैंड (Portland) के द्वारा दी गई इस जानकारी पर आधारित है जिसे राकेश घनशाला (Rakesh Ghanshala), स्वतंत्र लेखक और अनुवादक नए हिंदी में अनुवादित किया है।
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