RSS प्रमुख ब्राह्मण ही क्यों होता है, दलित, मुस्लिम, ईसाई, सिख क्यों नहीं?

लखनऊ। देश में भाजपा की सत्ता स्थापित होने के बाद जहां एक ओर आरएसएस के कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ी है तो आरएसएस की नीतियों को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। पिछले साल सवाल उठा था कि आरएसएस देश का सबसे बड़ा संगठन है, फिर राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी और 15 अगस्त क्यों नहीं मनाता। तिरंगा ध्वज क्यों नहीं लहराता। अब सवाल उठाया गया है कि आरएसएस प्रमुख हमेशा ब्राह्मण ही क्यों होता है। दलित या दूसरे समाज के व्यक्तियों को इस पद पर क्यों नहीं बि​ठाया जाता। 

सवाल जनहित संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हाजी मुहम्मद फहीम सिद्दीकी ने उठाया है। इससे पहले राष्ट्रीय सामाजिक कार्यकर्ता संगठन के संयोजक मुहम्मद आफाक ने अपने साथियों के साथ विधानसभा मार्ग ओसीआर बिल्डिंग के सामने आरएसएस के सर संघ चालक मोहन भागवत का पुतला फूंका। पुतला फूंकने वालों में मुख्य रूप से जनहित संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हाजी मुहम्मद फहीम सिद्दीकी, भागीदारी आंदोलन के संयोजक पी.सी. कुरील, मुस्लिम फोरम के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. आफताब, मौलाना कमर सीतापुरी सहित कई अन्य उपस्थित थे।

जनहित संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हाजी मुहम्मद फहीम सिद्दीकी ने मोहन भागवत से सवाल किया, 'यदि भारतीय नागरिकों को वह हिंदू समझते हैं तो 1925 से अब तक आरएसएस का प्रमुख केवल ब्राह्मण ही क्यों होता है। दलित, मुस्लिम, ईसाई, सिख आदि क्यों नहीं? ब्राह्मण समाज में समानता है ही नहीं, वहां तो केवल ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। धर्म पुरोहित को ही ऊपर बैठने का अधिकार है, शूद्रों पर तो केवल अत्याचार ही सदियों से होता रहा है, उनसे गुलामी ही कराई जाती रही है। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान दलितों का वोट लेने के लिए उनको हिंदू सूची में जोड़ लिया जाता है।

मुहम्मद आफाक ने कहा, 'आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत कुछ-कुछ समय पर अराजकता फैलाने वाले सांप्रदायिक भाषण देते रहते हैं। इधर फिर भारत में रहने वाले सभी लोगों को हिंदू बताकर तमाम धर्मो का अपमान किया है। मोहन भागवत बताएं कि वह हिंदू कब से हैं? क्योंकि रामायण, गीता आदि ग्रंथों में तो हिंदू का वर्णन कहीं मिलता नहीं है। आफाक ने कहा, 'वहां तो केवल ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया और शूद्र की पहचान रही है। चुनाव के अवसर पर कभी दलितों का आरक्षण समाप्त करने की बात करते हैं तो कभी सारे देशवासियों को हिंदू बताते हैं। यदि वह दलितों को हिंदू मानते हैं तो उन मंदिरों में जहां आज भी दलितों का प्रवेश वर्जित है, वहां दलित को पुजारी बनाएं।

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