कोचिंग वाले ने पढ़ाने से मना कर दिया था, अब बना IAS अफसर

नई दिल्ली। गरीब परिवार से आने वाले 30 साल के गोपाल कृष्ण रोनांकी की जिद और उनके हौसलों के आगे चुनौतियों के पहाड़ भी बौने हो गए। उन्होंने न सिर्फ सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की, बल्कि पूरे भारत में तीसरी रैंक हासिल की। रोनांकी के पिता रोनांकी अप्पा राव आंध्रप्रदेश के पारासांबा गांव मेंगरीब किसान हैं। उनकी पत्नी अनपढ़ हैं। दोनों बेटे की शुरुआती शिक्षा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दिलाना चाहते थे, लेकिन उनकी माली हालत ने इसकी इजाजत नहीं दी।

रोनांकी ने स्थानीय सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। परिवार की गरीबी का आलम यह है कि गोपाल को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से स्नातक करना पड़ा। परिवार को आर्थिक सहारा देने के लिए उन्होंने श्रीकाकुलम में एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया, लेकिन सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और हैदराबाद आ गए। हैदराबाद में गोपाल ने तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर जॉइन करना चाहा, लेकिन पिछड़े इलाके से आने व गरीबी के कारण किसी भी कोचिंग सेंटर ने उन्हें दाखिला नहीं दिया। गोपाल के पास खुद पढ़ाई के अलावा कोई चारा नहीं बचा। कोचिंग से महरूम होने को उन्होंने कमजोरी के बजाय ताकत बनाई, खुद तैयारी की और यूपीएससी में तीसरे टॉपर बने।

दून के हेमंत 88वीं रैंक के साथ हिंदी मीडियम में देश में शीर्ष पर
पहाड़ की दुरुह पगडंडियों से निकले दून के हेमंत सती ने साबित कर दिया कि सफलता की गारंटी सिर्फ अंग्रेजी माध्यम ही नहीं है। सरकारी स्कूल सेहिंदी माध्यम के इस छात्र ने हिंदी में सिविल सेवा की परीक्षा देकर 88वीं रैंक हासिल की। हेमंत हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले सफल उम्मीदवारों में भी शीर्ष पर हैं। चार बार मिली नाकामयाबी से डिगे बगैर उन्होंने पांचवें प्रयास में यह कामयाबी पाई।

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