विक्टिम को भिखारी ना समझे सरकार, मुआवजा है उसका अधिकार: हाईकोर्ट

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि रेप विक्टिम भिखारी नहीं होती हैं, उन्हें मुआवजा देना सरकार की जिम्मेदारी है, ये कोई दान नहीं है। चीफ जस्टिस मंजुला चेल्लुर और जस्टिस जीएस कुलकर्णी ने 14 साल की एक रेप विक्टिम की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए ये कहा। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के रवैये को क्रूर करार दिया। 

न्यूज एजेंसी के मुताबिक रेप विक्टिम ने मनोधैर्य योजना के तहत राज्य सरकार से 3 लाख रुपए का मुआवजा मांगा था। बोरीवली की रहने वाली विक्टिम ने आरोप लगाया था कि एक शख्स ने शादी का झांसा देकर उससे रेप किया। हाईकोर्ट की बेंच को बताया गया कि विक्टिम ने पिछले साल अक्टूबर में पिटीशन फाइल की थी। जिसके बाद सरकार ने मुआवजे के तौर पर उसे 1 लाख रुपए दिया था।

सरकार ने किया मुआवजे पर मोलभाव 
मामले की पिछली सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से हाईकोर्ट को बताया गया था कि वह सिर्फ 2 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर विक्टिम को देगी क्योंकि ऐसा लगता है कि घटना आम रजामंदी से हुई थी। इससे खफा होकर हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा, "14 साल की लड़की में इस सब की समझ होने और ऐसे मेच्योर डिसीजन लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती। न ही उसे इसके नतीते पता रहे होंगे।

कोर्ट ने कहा: यह बहुत ही बेरहम और क्रूर रवैया
चीफ जस्टिस चेल्लुर ने कहा, "जिस तरह सरकार इस मामले को ले रही है, वह हमें पसंद नहीं आया। यह बहुत ही बेरहम और क्रूर रवैया है। जब तक सरकार ऐसे मामलों में अपने दिल और आत्मा से सोचना और फैसले लेना शुरू नहीं करती, कुछ भी नहीं होगा। बेंच ने कोर्ट में मौजूद बोरीवली के डिप्टी कलेक्टर से कहा, अगर आपके किसी रिश्तेदार या फैमिली मेंबर्स के साथ ऐसी घटना हुई होती तो आपको कैसा लगता? सरकार को ऐसे मामलों में दिल से सोचना चाहिए। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे विक्टिम्स की मदद करे। मुआवजा विक्टिम का हक है। मनोधैर्य का मतलब है सेल्फ कॉन्फिडेंस, सरकार को विक्टिम के कॉन्फिडेंस को बढ़ावा देना चाहिए।

अब क्या कोर्ट लोगों से डोनेशन मांगने लगे
हाईकोर्ट ने पूछा, "क्या अफसरों को अपनी जेब से मुआवजा देना है? ये टैक्स पेयर्स का पैसा है। इसलिए सरकार को क्या दिक्कत है? आप नहीं देंगे तो क्या हम आम लोगों से डोनेशन कलेक्ट करना और विक्टिम्स को देना शुरू करें? बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन का हवाला देते हुए कहा, "एफआईआर दर्ज होने के 15 दिनों के अंदर ही 1 लाख रुपए का मुआवजा विक्टिम को दिया जाना चाहिए। इस मामले में सरकार ऐसा करने में फेल रही है। यह कन्टेम्ट ऑफ कोर्ट है। विक्टिम के कोर्ट में आने के बाद ही सरकार ने उसे 1 लाख रुपए दिए। जब हम किसी अफसर को कन्टेम्ट का दोषी मानते हुए एक दिन के लिए जेल भेजेंगे तो ही सरकार को अहसास होगा। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बोरीवली के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को अगली सुनवाई में मौजूद रहने का आदेश दिया। कोर्ट ने सरकार को मनोधैर्य स्कीम के फंक्शन पर एक एफिडेविट भी फाइल करने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 8 मार्च को होगी।

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