अब तो संयम टूट रहा है। बहुत बड़ी गलती हो गई इन आरामफरामोशों को कुर्सी देकर। कल मेरे जीजा जी श्री सुरेश पटेल जी का अचानक स्कूल में ही देहावसान हो गया। वह अपने गृहग्राम से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर सेवा दे रहे थे। वह खुद घुनघुटी में रहते थे जहां वे पदस्थ थे, जबकि बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के उद्देश्य से बच्चों को शहडोल में रखते थे। उनके वृद्ध माता-पिता गृहग्राम में रहते थे, एक अल्पवेतन से तीन-तीन जगह का खर्च चलाने के बाद क्या बचा होगा। अब ऐसी स्थिति में यह संवेदनहीन सरकार उनके परिवार की जरा सी भी चिंता करे, उसके कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, न तो अनुकम्पा नियुक्ति मिलेगी न कोई ऐसी राशि जिससे परिवार का गुजर-बसर हो सके। कहां जाए मृत अध्यापक का परिवार? क्या करे वो विधवा जिसकी बेटी पढ़ाई के खर्चे के साथ-साथ आने वाले साल-दो सालों में ब्याह योग्य होने वाली है।
श्री सुरेश पटेल, घुनघुटी जिला उमरिया, ग्रह- ग्राम - आमडीह जिला- शहडोल, असामयिक निधन के बाद परिवार को बेसहारा छोड़ने वाले अकेले अध्यापक नहीं हैं बल्कि अध्यापकों के साथ ऐसी घटनाएं रोज ही हो रही हैं और परिवार रोने- बिलखने के लिए छोड़ दिए जा रहे हैं, लेकिन आरामफरामोश अधिकारी और मंत्रियों का जमीर मर गया है। इन शासक-प्रशासकों का लाखों अध्यापक परिवार बद्दुआ देने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा है।
सुरेन्द्र कुमार पटेल