भोपाल। रेलमंत्री सुरेश प्रभु और सीएम शिवराज सिंह ने भले ही प्राकृतिक आपदा बताकर हरदा हादसे से हाथ झाड़ लिए हों परंतु यह प्राकृतिक आपदा कतई नहीं था। इस हादसे के पीछे हुई गड़बड़ियों में रेलवे की ठरकी इंजीनियरिंग भी एक बड़ा कारण रहा है। इंजीनियर्स ने पुल को मजबूत करने के लिए नदीं में धंसे 11 पिलर्स की चौड़ाई बढ़ा दी। स्वभाविक रूप से पानी के निकासी की जगह कम हो गई। पानी को जब पुल के नीचे से जाने का रास्ता नहीं मिला तो वो ट्रेक पर चढ़ गया।
100 मीटर लंबे पुल में 9.1 मीटर के 11 पिलर हैं। 15 साल पहले रेलवे ने पुल की मरम्मत की। तब पुल को मजबूती देने के लिए दोनों ओर पिलरों को करीब डेढ़-डेढ़ फीट मोटा कर दिया था। इस तरह 11 पिलर में करीब 33 फीट मोटाई बढ़ गई थी, लेकिन पानी निकासी की व्यवस्था जरूरी सुधार नहीं किया गया था। इससे पुल के भीतर पानी निकासी करीब 40 फीट कम हो गई।
इस पुल के अलावा हरदा की ओर मांदला गांव की सीध में दो पुलिया हैं। एक अन्य सहायक पुलिया खंडवा की ओर भी है। इनमें भी मसाला भरा गया। हादसे वाले दिन मांदला में घनघोर बारिश हो रही थी। ऐसे में काफी पानी जमा हो गया, पर 48 फीट की निकासी कम होने से ट्रैक पर जमा हो गया।